शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

राजा साहब मुस्कराए !


राजा साहब  के महल के बाहर एक घंटा लगा हुआ है जिसे न्याय-घंटकहा जाता है. आप कहेंगे कि राजा कहाँ हैं अब ? तो भईया देखा जाये तो न्याय भी कहाँ है अब ? जैसे घंटा लटक रहा है वैसे ही राजा भी लटक रहे हैं लोकतंत्र के मंदिर में. जो श्रद्धालु है वे बजा लेते हैं मौके और दस्तूर के हिसाब से.  इसी न्याय-घंट को एक आदमी लगातार बजाए जा रहा है. कायदे से उसे एक बार बजा कर इंतजार करना चाहिए लेकिन वह लगातार बजा रहा है. पूछने पर बोला कि जनहित याचिका के मामले में न्याय के कान में अक्सर तेल पड़ जाता है. रनिवास में व्यस्त राजा साहब का कतई मन नहीं है फिर भी वे कुछ जरूरी काम अधूरे छोड़ कर वे बाहर निकले तो ताक में बैठे उनके दरबारी-रत्न यानी कविराज, वैद्यऔर मस्त-मिडिया चट से उनके पीछे खड़े हो गए. राजा साहब ने फरियादी को घूरा, जिसका मतलब था कि घंटा बजाने की हिमाकत क्यों ?
फरियादी के कहा –“ हुजूर, प्रजा की रक्षा कीजिये मालिक. चोर-उचक्के, गुंडे-मवाली, लुटेरे-हत्यारे सब बेख़ौफ़ हो गए हैं.  घरों में रोज चोरियां हो रही हैं , यात्रियों से सामान लूट लिया जाता है, राह चलती औरतों के गले से चेन खींची जाती है.  बूढ़े मार डाले जा रहे हैं, बच्चे चुराए जा रहे हैं. रिआया अपने  को असुरक्षित समझ रही है.
सुन कर राजा साहब कुछ देर तक विचार मुद्रा में रहे. ऐसे मौकों पर विचार करते दिखने की सुदीर्ध परम्परा रही है हमारे यहाँ. फौरीतौर पर फरियादी की आत्मा को इससे तसल्ली मिल जाती है कि हुजूर उसके पक्ष में सोच रहे हैं. देखा जाये तो लोकतंत्र में जनता तसल्ली में रहे यह बड़ी बात है. भोली रिआया तो इसी बात से खुश हो लेती है कि हुजूर सोचते भी हैं. मौके और दस्तूर के हिसाब से मिडिया ने फ़ौरन कुछ फोटो ले लिए. पास खड़े वैद्यराज और कविराज-कक्कड  से राजा साहब ने पूछा इस फरियाद का यह मतलब क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए कि लोगों  के पास बहुत धन है और उनके अच्छे दिन आ गए हैं ?
ठीक कह रहे हैं हुजूर, अगर लोगों के पास धन नहीं होता तो चोरी जैसे अपराध की गुंजाईश कहाँ रहती, स्त्रियां सोना नहीं पहनती तो चेन खेंचने वालों को अवसर कैसे मिलते. क्राइम रिपोर्ट से प्रमाणित होता है कि प्रजा के अच्छे दिन आ गए हैं. इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है . हुजूर की जय हो. कक्कड ने समर्थन लेपन किया.
वैद्यराज ने अनुमोदन की पुडिया आगे की - राजा साहब आप ठीक कह रहे हैं , अब आमजन भी भोगविलास की ओर उन्मुख हो गए है. इन दिनों वाजीकरण के राजसी नुस्खों की मांग बहुत हो गई  है. अच्छे दिनों का इससे बड़ा प्रमाण कोई नहीं है.
कविराज-मक्कड ने दूसरा पक्ष रखा, क्योंकि वह नया नया कवि है , उसका काम है कविराज-कक्कड की  बात को काटना, बोले– “ राजन, फरियादी सच कह रहा है, आपके संसदीय क्षेत्र में कुछ लोगों ने आतंक मचा रखा है. वे सरगना की तरह काम करते हैं, मार-पीट और हप्ता वसूली भी खूब हो रही है. उन पर कड़ी कार्रवाई होना चाहिए .
इस बार राजा साहब सचमुच सोच में पड़ गए,  बोले –“ अगर हमें टिकिट नहीं मिला होता तो ये सरगनागिरी हमें करना पड़ रही होती. अगली बार अगर टिकिट उन लोगों को मिल गया तो सत्ता में वे होंगे. तब हमारे लल्लों-पिल्लों को रोजगार की समस्या होगी. आज अगर हम उन पर कार्रवाई करेंगे तो कल वे इन पर करेंगे. हमारी सेना का घर कैसे चलेगा.
कुछ तो करना पड़ेगा राजन, फरियादी अभी तक घंटे की रस्सी पकड़े खड़ा है. .... विलम्ब  किया तो ये फिर घंटा बजाने लगेगा, दूसरे तमाम लोग इकठ्ठा हो जायेंगे और बैठे बिठाये ब्रेकिंग न्यूज बन जायेगी . मस्त-मिडिया ने राजा साहब को चेताया.
कविराज कक्कड, बारीकी से विचार करो, कोई नया रास्ता निकालो. तुम्हारा नाम पद-श्री पुरस्कार के लिए आगे बढाया जा रहा है. चिंतित राजा ने कहा .
हुजूर, लोगों को कहा जाये कि वे अपने घर में नगद नहीं रखें, नगद नहीं होगा तो चोरी कैसे होगी. औरतों को नकली चेन पहनने को कहा जा सकता है. उसके बाद भी अगर प्रजा आदेश का उलंघन करती है तो शासन की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी.
राजा साहब को बात ठीक लगी, सो उन्होंने न्याय की ओर कदम बढाया, बोले- नागरिक तुम्हारी फरियाद पर विचार कर लिया गया है. अब प्रजा अपने घर में दस हजार से ज्यादा नगद नहीं रख सकेगी. अगर चोरी हुई तो माना जायेगा कि चोरी मात्र दस हजार की हुई है. महिलाएं भी नकली चेन पहनें, चेन खींची जाने पर शासन मानेगा कि नकली खींची गई है.
लेकिन हुजूर, फरियाद ये है कि गुंडे बेख़ौफ़ हैं , उसका क्या !?
हाँ गुंडों को दिक्कत तो होगी, लेकिन उनके लिए उचित मुआवजे की व्यवस्था की जायेगी.
लेकिन लोगों के पास दस हजार से ज्यादा रकम होती है. आप तो जानते ही हैं कि नब्बे प्रतिशत बिजनेस दो नम्बर में होता है, गलत सरकारी नीतियों के कारण लोगों को घर में लाखों-करोड़ों रखना पड़ते  हैं .
घरों में लाखों-करोड़ों होते हैं !! फिर तो डाका हमें ही डालना चाहिये. राजा फुफुसये.
कविराज मक्कड ने भी टेका लगाया, हुजूर, आपको डाका डालने कि क्या जरुरत है. आप छापे डलवाइये.
जहां तक इन अपराधों का सवाल है इसके लिए प्रजा ही  जिम्मेदार है. इसलिए इन पर कोई कर या जुर्माना  लगाया जाना चाहिए .
आयकर, संपत्ति कर, स्वास्थ्य  कर, मनोरंजन कर, सफाई कर, पढाई कर, और भी तमाम कर लगे हैं , ..... अब कौन सा कर लगा सकते हैं ? राजा सोच में पड़े या उन्होंने सवाल किया .
सौंदर्य कर या श्रंगार कर लगाना उचित होगा.
प्रदर्शन कर या दिखावा कर भी लगाया जा सकता है.
हुजूर, घंटा-कर ही लगा दें तो कैसा रहेगा. लोग फरियाद करके दोबारा लुटने नहीं आयेंगे .
राजा साहब मुस्करा उठे. सिपाही फरियादी की जेब तलाशी में जुट गए .
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ऊंट की लीद में जीरा

अमीरी के लिए पैसों पर निर्भर होने की परम्परा पुरानी है. अब जमाना बदल गया है, जो एसिडिटी के मामले में अमीर होते हैं वे ही सच्चे अमीर होते हैं. अमीर आदमी खाज-खुजली से ख़ुर्र ख़ुर्र करता किसे अच्छा लगेगा.  देखा जाये तो एसिडिटी का मामला डाक्टरी का एक मसला है. इस पर किसी को बोलना है तो डाक्टर बोले या फिर मरीज.  लेकिन भाई साब बीमारियाँ अब स्टेट्स सिम्बल हो गयीं है. सत्ता, समृद्धि और एसिडिटी आज सुखी और सफल लोगों की पहचान है. जहाँ तक गरीबों का सवाल है उनकी सबसे बड़ी बीमारी गरीबी है. भले दुनिया हजार कष्टों से भारी पड़ी हो लेकिन आदमी एक बार कायदे का गरीब हो ले यानी तय की गई रेखा के नीचे आ जाये तो सारे कष्ट बौने हो जाते हैं.
उन्होंने आते ही अपना नया विजिटिंग कार्ड आगे कर दिया कि वे चाय-वाय नहीं पियेंगे, एसिडिटी हो जाती है. इस सूचना के साथ फुट नोट में उनके एश्वर्य के बारीक़ अक्षर समझे जाने योग्य हैं.
“हाँ भई , बड़े लोगों के पास भला एसिड की क्या कमी है जो उन्हें ऊपर से भी पीना पड़े.”
“अरे नहीं, ऐसी बात नहीं है. जब से ये जीएसटी हुआ है ना तब से एसिडिटी की दिक्कत बढ़ गयी है.  ठीक से कुछ खा ही नहीं पा रहे हैं. हम खानदानी लोग हैं, पेट के अन्दर एक नंबर की जेब और दो नंबर की थैली ले कर पैदा होते हैं. इसी को आप फैमिली हिस्ट्री कह लीजिये. लेकिन अब बड़ी दिक्कत है. लोग समझते हैं कि सरकार हमारी है और हम मजे कर रहे हैं ! लेकिन हमारी हम ही जान रहे हैं. फोन में डायल टोन की जगह आवाज सुनाई देती है कि न खाऊंगा, न खाने दूंगा.”
“फिर इन दिनों खाने में क्या लेते हैं आप ?”
“कभी १८%, कभी २८%. जितना हाथ लग जाये. यों समझिये कि सच्चे व्यापारियों का पेट तो खाली ही रह जाता है. बिना दूसरी परत के कारोबारी शोभा भी नहीं देता है. अब क्या बोलें, .... विकास का मन्त्र मरने वालों को समझना चाहिए कि ऊंट के मुंह में जीरा डालोगे तो लीद में जो निकलेगा उसे वोट तो नहीं कह पायेगा कोई.”
“आप दुखी ना हों, सरकार शायद यह चाहती है कि अमीर भी ‘स्लिंम और फिट’ हों और जीवन का आनंद लें. ये क्या कि सुबह से शाम तक कोल्हू का बैल बने रहें. अब देखिये ना मात्र एसिडिटी की वजह से बीपी, शुगर, हार्ट वगैरह कहाँ कहाँ असर दिखाई नहीं देता है. आपको तो प्रसन्न होना चाहिए कि सरकार बिना किसी बीमा के आपकी सेहत का ध्यान रख रही है.”
“अब सरकार का क्या कहें ! क्या सोचा था और क्या हो गया. हम तो आज भी कह दें  कि छोरा चाय ला तो छोरा दौड़ा चला आता है. इसी मुगालते में रह गये, अब कोई सुनने वाला नहीं है. जिससे टेबल पर कपड़ा मरने की उम्मीद लिए बैठे थे वो झाड़ू मर देता है बार बार !! वो भी कभी पीठ पर कभी कमर के नीचे.”
उनके चेहरे पर नाराजी और पछतावे का भाव उतर आया. अगर भूल सुधार का कोई मौका मिल जाये तो वे शायद चूकें नहीं. अब देखो, अगले चुनाव में ऊंट किस करवट बैठता है और लीद में क्या करता है.”
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