बुधवार, 19 जुलाई 2017

सिस्टम के कीड़े

कालियाजी का धंधा तो जेबकटी का है लेकिन आदमी उसूलों वाले हैं. वे मानते हैं कि धंधा चाहे कैसा भी हो जी-जान लगा कर करना चाहिए. बहुत जरुरी हो तो अपनी जान लगा देने से पीछे नहीं हटना चाहिए. उसूल बड़े होते हैं, दुनिया धंधा नहीं उसूल देखती है. जो इस बात को समझ लेता है वो उसूलों को सूट-टाई की तरह पहनता है. सभ्य समाजों में सूट-टाई दिख जाए तो कुछ और देखने की जरुरत और आदत नहीं है. कालियाजी मेराथन दौड़ सकते हैं, चाहते तो चेन खींचने का काम भी कर सकते थे. आजकल इसमें अच्छी कमाई चल रही है, मेनेजमेंट और इंजीनियरिंग की पढाई करने वाले भी इसमें लगे हैं और अपना सुनहरा भविष्य बना रहे हैं. लेकिन कालियाजी ये काम पसंद नहीं है. उनका उसूल है कि सामान्य तौर पर माता-बहनों की इज्जत करना चाहिए. दूसरा ये कि चेन खिंचाई का धंधा ओछा है. किसी भली महिला को ताड़ा, चेन खिंची और चोट्टों की तरह भाग लिए ! धंधे में इज्जत होना चाहिए, यह उनका दूसरा उसूल है. जैसे कि उनका धंधा. कई बार तो जेब काटने के बाद वे अपने शिकार के आंसू पोंछते, सांत्वना देते वहीँ उसके पास मौजूद रहते, उस पर अहसान करते हैं. आज के युग में मरीज के मरने के बाद डाक्टर तक भाग जाते हैं, ऐसे में यह बड़ी बात है. देश में सफाई अभियान चल रहा है और वे पूरी ताकत से इसमें जुटे हैं. जेबकटी को वे एक उम्दा दर्जे की कला मानते हैं. जिसकी जेब कटती है उसकी तो छोडिये, दाहिने हाथ से जेब काटते हैं तो खुद उनके बाएं हाथ को पता नहीं चलता. उनका उसूल है कि जो भी काम करो पूरी निष्ठा और दक्षता से करो. धंधा कोई भी हो बिना लगन, मेहनत और ईमानदारी के सफलता नहीं मिलती है. जिसका जो हक बनता है वो उसे ईमानदारी से देना चाहिए. इसलिए एरिया के भाई लोगों को टुकड़ा डालने में कालियाजी ने कभी कोई कोताही नहीं की. वर्दी वालों की वे बहुत इज्जत करते हैं, इतनी कि उन्हें समाज में किसी से इज्जत नहीं मिलने का मलाल नहीं रहता. उनसे कभी कुछ छुपाया नहीं, हमेशा सम्मान के साथ भरपल्ले दिया. जो सिस्टम का सम्मान करते हैं सिस्टम उनका सम्मान करता है. यही आदर्श परम्परा है. कालियाजी सिस्टम के कीड़े हैं तो ऐसे ही नहीं. उन्हें पता है कि अच्छा आदमी अच्छे व्यवहार से बनता है. इसलिए उनका उसूल है कि अपना करम करो, सबको हिस्सा दो, पक्के समाजवादी बनो. सबका साथ, सबका विकास में विश्वास रखो. ईश्वर भी आदमी की अच्छाई देखता है धंधा नहीं. इसीलिए पूजा-पाठ जिनका धंधा होता है उन्हें इसका पुण्य नहीं मिलता है. कालियाजी गरीबों, बीमारों के आलावा घरम-करम और प्रभु के लिए भी कुछ हिस्सा अवश्य रखते हैं.
पिछले चुनाव के वक्त देश की बड़ी पार्टी ने बड़ी उम्मीद से उम्मीदवारी का प्रस्ताव कालियाजी के पास भेजा था. लेकिन इन्होंने साफ मना कर दिया कि मैं उसूलों वाला आदमी हूँ खोटे काम नहीं करता. कल ऊपर वाले के सामने भी हाजिर होना है. कहते है कि नेतृत्व करने वालों के लिए नरक में तीन नये बनवाना पड़े हैं यमराज को. ए-ब्लाक कामरेडियत के दावेदारों से भरा पड़ा है. बी-ब्लाक वाले जब भूख से तिलमिलाते हैं तो भजन गाते हैं ‘वैष्णवजन तो तेने कहिये जो पीर परायी जाने रे’. सी-ब्लाक रिजर्व है, सुना है इसके भागी अभी धरती पर राज कर रहे हैं. जैसे ही वे मुक्त होंगे सीधे इधर पधारेंगे. कालियाजी उसूलों वाले आदमी हैं, सो स्वर्ग में किसी ब्लाक की उम्मीद से हैं.
(फुटनोट- कलियाजी वो जेबकट नहीं हैं जो रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड आदि पर धंधा करते हैं। )

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