गुरुवार, 4 मई 2017

मोगरी मसाला


दुल्हन को सरकार की तरफ से मोगरी मिली है यह पता पड़ते ही सास ने कपड़ों का ढेर लगा दिया. किसी ने मोगरी के साथ नत्थी निर्देशिका की ओर ध्यान ही नहीं दिया कि पी कर आये (केवल अपने) पति की धुलाई के आलावा अन्य किसी प्रकार से इसका उपयोग नहीं किया जा सकेगा. लेकिन नई ब्याही बहु है और अभी घर सास का है. जाहिर है इस घर में सास से बड़ी सरकार कौन !! वे अधिकार संपन्न और अनुभवी हैं, बेहतर जानती हैं कि मोगरी से कब क्या किया जा सकता है.
सरकार चाहती है कि परिवार की परम्परागत बुनियाद में बदलाव हो. प्रेम घिसा पिटा और फ़िल्मी हो चला है. प्रेम के ही कारण सांस्कृतिक पतन हो रहा है. मोगरी आज के समय की जरुरत है. सरकार को पता है कि आज जो शादी कर रहा है कल मयखाने भी जरुर पहुंचेगा. मयखानों में अच्छी व्यवस्था है, हजारों करोड़ के राजस्व का सवाल है जी. लेकिन शराबबंदी का शोर विपक्ष की करतूत है. प्रदेश भर  की मातृशक्ति हल्ला मचा रही हैं. यह दांव है, किसी मुद्दे पर महिलाओं को एक जुट करके सिर कर दो और देखो तमाशे. ये अच्छी राजनीति नहीं है. सरकार को आदमी-औरत दोनों के वोट मांगता. शराबबंदी कर दें तो आदमी गए, नहीं करी तो औरतें. अनारकली बना दिया सरकार को. एक जीने नहीं देंगे दूसरे मरने नहीं देंगे.
सरकार को सब तरफ से सोचना पड़ता है. लोग होश में रहने लगे तो हजारों सवाल करेंगे. धार्मिक यात्राओं और भोजन-भंडारों की भी एक सीमा होती है. जनता सिर्फ इनके भरोसे तो हाँकी नहीं जा सकती है. और अगर बंद कर दी तो साहित्य का क्या होगा ! कवि कविता लिखना बंद कर देंगे. पुरस्कार लौटने लगे तो प्रदेश भर में नए काउंटर खोलना पड़ जायेंगे. वे कविता से जनता को सुलाये रखते हैं, इससे सरकार के हाथ मजबूत होते हैं. लोग वैसे भी सरकार को साहित्य के प्रति शुष्क मानते हैं. यह चिंता की बात है कि शराबबंदी कर दी तो प्रदेश में नया साहित्य कहाँ से आएगा ! उठाने वाले तो ये सवाल भी उठा रहे कि हुजूर को ये आइडिया किधर से मिला कि मोगरी से शराबबंदी की जा सकती है. कहीं तो कारगर हुआ होगा. बहुत से अफसरान नहीं पीते, लेकिन क्यों नहीं पीते यह अब समझ में आ रहा है. अफसर अनुभवी है, और चाहते हैं कि जनता भी अनुभव करे. मिडिया को इतना बुद्दू मत समझो आप लोग.
यहाँ तक तो ठीक है, मोगरी-स्ट्राइक को लेकर तीसरी पार्टी कह रही है कि ये सरकार की चाल है. पीने वालों पर हेलमेट खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है. इसके लिए कम्पनियों से भारी डील हुई है. अभी तक आदमी पीता था और चला जाता था. अगर घर को मोगरी मैदान बना दिया गया तो कौन समझदार घर लौटेगा. राजस्व बढ़ाने की यह सोची समझी चाल है. एक मोगरी से सबको साध रही है सरकार !!

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