शनिवार, 8 अप्रैल 2017

इधर बात, उधर चीत

ज्यादातर लोग मानते हैं कि हल जो है निकलने की चीज होता है. हल की दूसरी विशेषता यह भी है कि वह हर किसी के पास होता है. बस समस्या को दिखना भर चाहिए, हल निकलने लगता है. जिनके पास निजी और स्थानीय समस्याओं  का हल नहीं होता है वे प्रायः राष्ट्रिय समस्याओं के हल अपनी जेब में तैयार रखते हैं. हल की तासीर के हिसाब से यों तो कई प्रकार के होते हैं लेकिन ज्यादातर मामलों में ठोस और पुख्ता होते हैं. जो हल ठोस और पुख्ता नहीं होते हैं उन्हें टेम्परेरी या कामचलाऊ माना जाता है. जैसे किसी किसी मंत्री को अपमानित करने के लिए उसके पुतले को पीट लिया जाता   है.  ठोस हल आसानी से निकलता नहीं है, उसे बातचीत या घिस घिस करके निकलना पड़ता है. दोनों विधाओं में अंतर होता है, जो समझदार होते हैं वो बातचीत करते हैं और घिस घिस करने वाले अपने आप को समझदार मानते हैं. कभी कभी एक पार्टी बातचीत करती है और दूसरी घिस घिस, तो हल निकलने की बजाय और अंदर धंस जाता है. धंसे हुए हल के मामले में संसद, शासन या कोर्ट भी लाचार हो जाते हैं. हालाँकि कई बार हल इतने सीधे-सरल होते हैं कि पांच अंगूठाछाप सरपंच-पति भी बैठ कर हुक्का पीते हुए चट्ट से निकाल लेते हैं. गहरे फंसे हल को निकलने के लिए ज्यादा लोग और सिरफोड़ मशक्कत लगती है. लेकिन आज का आदमी ठहरा विज्ञानखोर. खोदने लगे तो तेल भी ऐसे निकल लेता है जैसे बच्चों का खेल. कभी जब खुदाई में इतिहास निकल आता है तो बरसों यह समझने में लग जाते हैं कि जो निकला है समस्या है या हल है !! अगर समस्या निकली है तो ठीक, इसका हल भी निकल ही लिया जायेगा. लेकिन कई बार खुदाई में हल ही निकल आता है तो उसके लिए समस्या ढूँढना इतना कठिन हो जाता है जितना रियल लाइफ में बद्रीनाथ के लिए दुल्हनिया खोजना.
हल को लेकर साफ साफ पता नहीं चलता कि आखिर वो है क्या ! लगता है कि समस्या एक हाथी है और हल, .... हल अन्धों का हाथी है. हाथी छोटा या बड़ा हो सकता है इससे हलधरों को कोई फर्क नहीं पड़ता है. वे हर समस्या के लिए प्रामाणिक दुम, सूंड या पैर पकड़े खड़े हैं. समस्या की दो गज जमीन दिखाई देते ही जबरिया जुताई शुरू हो जाती है. इधर कुछ दिनों से चर्चा है कि बातचीत से हल निकला जायेगा. टीवी वाले लोगों को बैठा बैठा कर बातचीत करवा रहे हैं लेकिन हल है कि निकलता ही नहीं. लेकिन समस्या जरुर एक की चार हो जाती है. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि जिस गॉव जाना नहीं उसकी बात ही क्यों करना !! लेकिन मेनेजमेंट यह कहता है कि बात करते रहो एक न एक दिन गॉंव हाथ लग ही जायेगा. प्रस्तावक इंतजार कर रहे हैं, सामने वालों के हाँ करते ही बसंती को आगे कर देंगे. फिर देखते हाँ कौन वीरू मैदान मरता है.
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बाबा के कटोरे में ......


‘‘ लोगो ! ... मुझे सन् २०२९ का समय दिख रहा है ....  बाबा ने अपने कटोरे में झांकते हुए कहा.
उपस्थित जन चौंक पड़े. एक बोला,-  बाबा सरकार किसकी है !? !
 सरकार देसी है. मंत्री घोड़ों पर चल रहे हैं । प्रधान मंत्री हाथी पर बैठ कर नगर भ्रमण को जा रहे हैं । सैनिकों  के हाथ में बंदूकें नहीं भाले बरछी हैं । जनता प्रजा में बदल चुकी है और महाराज की जेजेकार कर रही है. ......
ओ बाबा, ... मोबाईल पर बाजीराव मस्तानी देख रहे हो क्या !?
 मोबाईल नहीं है बच्चे, ये करिश्माई कटोरा है, इसमे अतीत नहीं भविष्य दीखता है । मुझे वही भविष्य दिख रहा हैं जैसा कि आप लोग बना रहे हो । आप लोग बोलो तो आगे की बात कहूं ना बोलो तो नहीं कहूं......’’ । बाबा ने पंचघातु की बनी अपनी थाली जिसमें पंचतैल यानी पांच तरह का तैल भरा हैमें झांक कर देखते हुए कहना शुरू किया। आसपास इकट्ठा लोग चमत्कार की उम्मीद से ही खड़े थे ना कैसे बोलते।  
बाबा बोलते रहे, - पर्दा प्रथा है, औरतें बाहर नहीं निकलती हैं , सड़कों पर पीली धूल फैलाई गई है, इससे गन्दगी हो रही है लेकिन परम्परा का पालन करते हुए सब प्रसन्न हैं । जो प्रसन्न नहीं हैं वे डर के मारे प्रसन्नता व्यक्त कर रहे हैं । पूजा स्थलों पर रजिस्टर रखे हैं जिस पर भक्तो की उपस्थिति लगायी जाती है । सबके माथे पर शिखा यानी चोटी है, जिनके नहीं है और वे भी जो गंजे हैं उन्हें दण्डित किये जाने का प्रावधान है.बाल विवाहों का चलन शुरू हो गया है.....    बाबा ने बताया.
आप लोग भी मेरी तरह समझदार हैं सो यह बताने की कतई जरूरत नहीं है कि बाबा पहुंचे हुए हैं। मुझे भी किसी ने नहीं बताया था कि वे पहुंचे हुए हैं लेकिन मैंने एक झटके में मान लिया कि वे पहुंचे हुए हैं। एक बार आदमी बाबा बन जाए तो उसे पहुंचा हुआ’ होने से कोई रोक नहीं सकता हैकानून भी नहीं और जमाना तो मानने के  लिए उधार ही बैठा रहता है। जब सब किसी को पहुंचा हुआ मान लें तो आपको भी मान लेना चाहिएइसी को परंपरा का पालन करना कहते हैं। सीधे सरल यानी गऊ टाइप आदमी की यही पहचान होती है कि जब भी कोई पहुंचा हुआ दिखे वह सीधे उसके चरणों में पहुंच जाए। इधर बाबा आए हैं तभी से आसपास वाले घेरे खड़े हैं। चुनाव दूर हैं इसलिए पानी की समस्या इधर रोजी-रोटी की समस्या से भी बड़ी हो गई है। नल आते हैं और चिरंजीव भव’ कह कर फौरन चले जाते हैं। जैसे नारद नारायण-नारायण कहते आते हैं और वैसे ही नारायण-नारायण कहते चले जाते हैं। टेंकर वाला पानी ले कर आता है तो रिश्ते-नातेमित्र-मोहब्बतपास-पड़ौस सब मिथ्या हो जाता है । गीता में लिखा है कि इस संसार में कोई किसी का संबंधी नहींकोई सगा नहींसब प्यासी आत्मायें हैं और टेंकर के आते ही पहले अपना बरतन भरने में लग जाती हैं। वृद्धजन कभी भगवान से सांसें मांगा करते थे अब पानी मांगते हैं। न ढंग की सांसे मिलती हैं न पानी ।
बादल आते हैं भरे-भरे से लेकिन डाकिये की तरह हमारा घर (क्षेत्र) छोड़ कर आगे निकल जाते हैं। एक बार अधीर हो मैंने डाकिये से पूछा भइया सबके यहां चिट्ठी देते हो लेकिन मेरे यहां से ऐसे ही निकल जाते हो !!’ उसने टका सा जवाब दिया-‘ तुम्हारे नाम की आएगी तो दूंगा नहीं क्या !!’ मैं बादलों से अगर ये  सवाल पूछूं तो वे शायद यही जवाब देगें। इसलिए हिम्मत नहीं होती है ।
अखबारों में रोज छप रहा है कि पानी बचाओ। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि जब है ही नहीं तो बचाएं कैसे। सारे लोग चर्चा में पानी-पानी कर रहे हैं। मेहमान आए तो पानी-चायनेता आए तो पानी-हायलड़का आए उछल के नहाय, लड़की आए तो गगरी उठा के जाय । कवि रहीम होते तो लिखते कि - रहिमन पानी प्रेम का, मत ढोलो छलकाए, ढोले से न मिले, मिले मैला पड़  जाय. नलोंटंकियोंबाल्टियों के अलावा सब तरफ पानी पानी की पुकार । ऐसे में बाबा आ गए पहुंचे हुए तो उनसे पानी के अलावा कुछ और तो पूछा नहीं जा सकता था।
‘‘ बाबा ये बताइए कि आगे पानी का कैसा क्या रहेगा ?’’ एक मुरझाये मनी प्लांट ने पूछा.
बाबा अभी भी पंचतैल में झांक रहे हैं। ऐसे जैसे कि आजकल हर कोई अपने स्मार्ट फोन में झांकता रहता है। बोले - अभी का तो नहीं पंद्रह साल बाद का दिख रहा है ..... कहो तो बताऊँ ?’’ जवाब में एक साथ कई आवाजें आई बताओ बाबा।
बाबा ने सुट्टे की तरह सन्नाटे का आनंद लिया और बोले- ‘‘ मुझे दिख रहा है, साफ साफ दिख रहा है । शनिवार का दिन हैमांगने वाले घूम रहे हैं कि चढ़ाओ शनि महाराज को पानी। .... लोग कटोरी में दो चम्मच पानी ला कर चढ़ा रहे हैं। डिस्पोजेबल कपड़ों का प्रचलन हो गया है। नहाने की परंपरा समाप्त हो गई है। जिस तरह आम आदमी शादी के एक मात्र अवसर पर सूट पहन लेता है उसी तरह घुड़चढ़ी से पहले दूल्हे को ढ़ाई लीटर पानी से स्नान कराने विधान बन गया है। फिल्मों से नायिकाओं के स्नान दृष्य बंद हो गए हैं, क्योंकि इससे फिल्म का बजट बढ़ जाता है। लोग बाथरूम सीन वाली पुरानी फिल्मों पर टूटे पड़ रहे हैं । टायलेट में फ्लश सिस्टन की जगह पोटली सिस्टम प्रचलित हो गया है। मंजन-कुल्ले के लिए भी नया ड्राय सिस्टम है प्रचलन में आ गया है। देश के सबसे अमीर खंबानी बंधु रोजाना दो-तीन बार नहा कर ब्रेकिंग न्यूज में छा जाते हैं। मेहमानों का सत्कार काफी बाइट से हो रहा है। केवल अमीर घरों में बर्तन पोछा होता है । जिनके पास आधार कार्ड हैं उन्हें प्रति दिन एक लीटर पानी मिल रहा है । विज्ञापन छप रहे हैं कि पांच हजार की खरीदी पर एक लीटर पानी मुफ्त दिया जायेगा. ......
बस करो बाबा, अब रुलाओगे क्या !?! एक आवाज आई ।
 कुछ अच्छा नहीं देख सकते क्या बाबा .... !! दूसरी आवाज आई ।
बाबा बोले –“ मैं वही देख रहा हूँ जो तुम बना रहे हो ।  कुछ अच्छा देखना चाहते हो तो उसके लिए अभी से कुछ अच्छा करना शुरू करो. .... पानी और वोट को बहुत सावधानी से खर्च करना सीखो लोगों ।  

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