सोमवार, 30 जनवरी 2017

बाबू बेईमान होना चाहता है

बाबू की आँखों में नींद नहीं है, आज रात दो से तीन के बीच स्वर्ण सिद्धि योग है. इस तरह  के योग तभी बनते हैं जब पूरा देश सोया होता है. कहने वाले कह गए हैं कि सोया सो खोया, जगा सो पाया. अगली गली में पोत्दारजी का बंगला है जिसकी कम्पाउंड वाल से लग कर मनी प्लांट फैला हुआ है. बाबू को इस मुहूर्त में मानी प्लांट की एक लट चुरा कर लाना है और अपने यहाँ रोप देना है. ऐसा करने पर उसके यहाँ भी पैसा आएगा, जैसा कि पोत्दार जी के  यहाँ बरस रहा है.  बाबू को ये उपाय बहुत पहले एक जानकर ने बताया है लेकिन वह हिम्मत नहीं कर सका और कई मुहूर्त निकल गए. हालाँकि मनी प्लांट चुराने के मामले में कानून की कोई धारा अभी तक नहीं है. लेकिन हिम्मत अपनी  जगह है, कानून अपनी जगह और पोत्दार जी के दो जर्मन शेफर्ड कुत्ते अपनी जगह.
जिस तरह के आदमी को हम लोग कभी कभी उसका अपमान न करने की गरज से सीधा सच्चा इंसान कह देते हैं , बाबू  ठीक वैसे ही आदमी हैं. किसी समय यानी स्कूल में उन्होंने नमक का दरोगा कहानी पढ़ी थी. तभी से उनके दिमाग  में ईमानदारी के भित्ती चित्र बने पड़े हैं. वैसे तो दुनिया जहान  के हजार काम पड़े हैं करने को लेकिन वे नहीं करते हैं. वे पहले सूंघ लेते हैं कि इस काम में बेईमानी की कितनी गुंजाईश है. पता चलता है कि आज कोई काम ऐसा है ही नहीं जो ईमानदारी से किया जा सके. इसलिए वे कुछ करते ही नहीं हैं ताकि ईमानदार बची रहे. इंतजार बस इतना है कि कोई सेठ या बिजनेस किंग जैसा कोई आए और अपनी कंपनी में उन्हें सजा ले. बाबू को यह भी लगता है कि ईमानदारी का गहरा रिश्ता अगर किसी चीज से है तो वो है नमक. लोग जिसका नमक खा लेते हैं उससे बेईमानी नहीं करते है. स्कूल के दिनों में बाबू के साथ ठकुर जालमसिंग का बेटा संग्राम पढता था. उसे घर वालों की सख्त हिदायत थी कि मीठा भले ही खा लेना पर किसी का नमक नहीं खाना, चाहे अमरुद में बुरक कर ही कोई क्यों न दे. उसी ने बाबू को बताया था कि किसी का नमक खा लो तो उसके प्रति ईमानदार रहना पड़ता है. और ईमानदारी से भला कोई जमींदारी चलती है !! लेकिन मीठे में ऐसा कुछ नहीं है, संत्री से लेकर मंत्री तक का सारा खेल मीठे से ही चलता है. और तो और भगवान तक भक्तों का नमक नहीं स्वीकारते, मीठे से ही पूजा पूरी होती उनकी. जहाँ मीठा होता वहाँ ईमानदारी को छोड़ सारे सभ्याचार होते है. सभ्य समाज की सफलता के सारे रहस्य मीठे में छुपे होते हैं. मीठे का ये सच कुछ लोगों को कड़वा लग सकता है, लेकिन कडवे को किस तरह थू कर देना है वे जानते हैं.
 कानून सबकी रक्षा नहीं कर पाता, चाहे वह निरीह काले हिरन हो या बाबू जैसे आदमी. वैधानिक न भी हो तो भी आप इसे चेतावनी मान सकते हैं. बाबू कानून से इसलिए भी डरता है कि कभी चपेट में आ गया तो इसी से मारा जायेगा. कानून का रुतबा और साख बढाने में गरीब आदमी बड़े काम आता है. अगर कोई तरक्की और सभ्यता की मुख्यधारा से अपने को बचाए रखे, यानी कोई अरमान ना रखे, जो मिल जाये उसी में खुश रहे, सरकारी टीवी, अस्पताल और स्कूल से काम चलाए, कौडियों के मोल में मिल रही अमेरिकी उतरन पहने, कंट्रोल के माटी मिले अनाज से तृप्त हो ले तो कानून खुश है. बाबू को इसमे बस एक ही दिक्कत है कि कानून से डरने वालों की कोई इज्जत नहीं करता है. यह बात उसे अच्छी नहीं लगती है. उसके मन में यह है कि भले ही लोग भोंदू मानें पर थोड़ी इज्जत भी करें. आदमी संसार में सिर्फ रोटी तोड़ने तो आया नहीं, इज्जत के लिए भी आया है. देखा जाये तो आदमी के पास इज्जत के आलावा और क्या है ! लेकिब बाबू को दुःख ये है कि आजकल इज्जत पैसे से मिलती है और पैसा बेईमानी का सगा है. एक ज्ञानी बताए हैं कि ईमानदारी और पैसा समझिए राहू-केतु हैं. दोनों एक घर में नहीं बैठते. पैसा चाहिए तो ईमानदारी का उद्यापन करना अत्यंत आवश्यक है. ईमानदारी आज के युग में एक पापग्रह है, जिस कुंडली में होता है उस जातक को कभी पनपने नहीं देता है. इस दोष का जितनी जल्दी हो सके निवारण करें. शास्त्रों में सब तरह के उपाय मौजूद है. बाबू ने ऐसे व्रत किये जिसमें नमक नहीं खाना था. मीठा खा कर अभी उत्तर दिशा में निकला कभी दक्षिण में दौड़ा. मीठा चढाया, मीठा खिलाया, मीठा बांटा. यहाँ तक कि काले सांड को खोज कर उसे गुड-दाल खिलाई. धर्म की शरण में आने से लाभ यह हुआ कि नमक पर से उसका ध्यान हटा, दिमाग में बने भित्ती चित्र धुंधले पड़े. सफलता के लिए यह पहली सीढ़ी है. उसने माना कि जो करता है वो ईश्वर ही करता है यानी देने वाला भी वही है और लेने वाला भी वही है. बेईमानी सिर्फ एक विचार है जो नियमित फूल-चन्दन करने, पूजा पाठ करने से परेशान  नहीं करता है. नमक और इश्क का चक्कर अच्छे भले आदमी को बर्बादी करता है. नमक को जुबान से आगे महत्त्व नहीं देना चाहिए, इसलिए बोल मीठे हों तो बेईमान आदमी को ईमानदार होने का सुख महसूस हो सकता है.
बाबू अब इज्जत चाहता है, सुख की जिन्दगी जीना चाहता है, दो जर्मन शेफर्ड कुत्ते पलना चाहता है. एक ड्रायवर, एक माली, एक सीए, एक वकील, अपनी सेवा में रखना चाहता है. बाबू भाग्यवान होना और कहलाना चाहता है, अपने निजी धन से कथा-भागवत के भव्य आयोजन करवाना चाहता है, भगवान को थाल भर के लड्डू चढाना चाहता है. अपने लिए मोक्ष और स्वर्ग चाहता है सबके साथ से अपना विकास चाहता है इसलिए बेईमान होना चाहता है. इसमें कोई बुराई है क्या ?

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बुधवार, 18 जनवरी 2017

छत पर धूप खाते हुए एक रिश्ते की तलाश

इस वक्त यानी सुबह के साढ़े आठ बजे बहुत सर्दी पड़ रही है. इधर लोग रात जो पड़ती है उसे ठण्ड कहते है. इसके विस्तार में जाये बगैर मेरी तरह आप भी मान लो कि कहते होंगे, अपने को क्या.  जो मिल जाये उससे काम चला लेने की आदत छोटी-मोटी गलतियों पर ध्यान नहीं देती है. तो कह सकता हूँ कि सर्दी बहुत लग रही है, और जुकाम हो जाये तो सर्दी हो गई है . कई लोग  इस स्थिति को सर्दी खा जाना भी कहते हैं. दरअसल अपने देश में खाने की रेंज बहुत बड़ी है. सर्दी सेलेकर रिश्वत तक सब इसी से व्यक्त होता है.
नीचे कांप रहा था तो घर वालों ने कहा छत पर चले जाओ और धूप खाओ थोड़ी. धूप में बैठे या पड़े हुए आदमी और धूप खाते हुए आदमी में अंतर होता है. ऐसा माना जाता है कि जो धूप खाते हैं वे सर्दी नहीं खाते. मैं छत पर हूँ और देख रहा हूँ कि अभी धूप खाने लायक नहीं हुई है . सो, इन द मीन टाइम, हवा खा रहा हूँ. हवा जो है हमारे एरिया में प्रचुर मात्र में पाई जाती है. प्रापर्टी डीलरों ने खास हवा की मात्रा की वजह से इस एरिया के भाव बहुत बढा रखे है. अभी पिछले दिनों जब तैमूर अली साहब ने दुनिया रौशन की, तब दो गली छोड़ के एक प्लाट बिका है. सुना है खरीदने वाले ने हवा की मात्रा के काफी पैसे दिए, वरना प्लाट तो कहीं भी मिल जाता. देखिये, अगर आप प्रबुद्धनुमा कुछ हैं तो हवा की मात्रा को ले कर आपत्ति कर सकते है, आपकी समस्या है. मैं प्रबुद्ध नहीं हूँ सो हवा की मात्रा को ले कर मुझे तब तक कोई दिक्कत नहीं है जब तक कि फेफड़े भर मुझे मिलती रहे.
सामने तीन मंजिला मकान है जो दरअसल एक बंगला है और जिस पर लक्ष्मी-निवास भी लिखा हुआ है. यहाँ विश्विहारी श्याम सुमन जी रहते हैं. लक्ष्मी गृह स्वामिनी का नाम है, चूँकि वे ब्याह कर लाई गईं हैं इसलिए आटोमैटिक गृह स्वामिनी हो गईं हैं. दरअसल वे कैशलेस-लक्ष्मी हैं. वे  दुर्गा, काली, चंडी या कुछ भी होती, कैशलेस ही होती. आपको लग रहा होगा कि श्याम सुमन जी कवि या लेखक-वेखक हैं. अगर लग रहा है तो लगने दीजिए, इसमें कोई हर्ज नहीं है, थोड़ी देर में अपने   आप ठीक हो जायेगा. लेकिन सचाई ये है कि श्याम सुमन दरअसल रात के पंछी हैं. कुछ लोगों को इस वजह से लगता है कि उन्हें अँधेरे में भी दिखाई देता है. वास्तविकता क्या है अभी कुछ साफ नहीं है.
तो श्याम सुमन जी अपनी तीसरी मंजिल पर टावेल लपेटे बैठे धूप खा रहे है. उनकी छत पर खाने लायक धूप आ चुकी है. अगर थोड़ी ओट मिल जाये तो वे अपने और धूप के बीच टावेल को बाधा नहीं बनने दें. किन्तु अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया है, जाहिर है कि वे शिष्टाचार जैसी अनावश्यक बातों का भी बड़ी शिद्दत से ख्याल रख रहे हैं. विकास इसी को कहते हैं. आखिर आदिकाल से चल कर मानव तीसरी मंजिल तक पहुँच गया है तो उसकी प्रसंशा की जानी चाहिए. अगर वे मेरी ओर देखभर लेंगे तो मैं मुस्कराते हुए हाथ उठा कर उनका अभिवादन करना चाहूँगा. लेकिन हकीकत ये है कि वे पडौसी भी हैं. अच्छे पडौसी का धर्म होता है कि वो पास पडौस में झांके तक नहीं चाहे कोई मर ही क्यों न रहा हो. लोग मानते हैं कि जब आप पडौसी की मदद के लिए हाथ आगे बढाते हैं तो ईश्वर अपने हाथ खींच लेता है. इसलिए सच्चे पडौसी कभी मदद को आगे नहीं आते हैं और ईश्वर में हमारी आस्था को मजबूत करते हैं. इसी का नाम पडौसी धर्म होता है.
काफी समय हुआ एक बार हमारी मुलाकात हुई थी, हमने हाथ तक मिला लिया था. यह लगभग वही समय था जब हमारे प्रधान मंत्री ने चीनी नेताओं को स्वागत भोज दे रहे थे. श्याम सुमन जी के साथ इस मुलाकात को मिडिया ने भले ही कवर नहीं किया हो पर मोहल्ले के लोगों ने लाइव देखा था, लेकिन छोटा मोटा घोटाला जैसा कुछ मान कर सबने तुरंत भुला भी दिया था. मुझे लोगों की इस तरह की प्रवृत्ति पर आपत्ति है. छोटे क्या वे बड़े घोटाले भी भूल जाते हैं. अभी तक यह समझ में नहीं आया है कि लोकतंत्र की सफलता के पीछे भूलने का महत्त्व है या याद रखने का. अगर मौका मिला तो श्याम सुमन जी से इस बिंदु पर विचार करना चाहूँगा. कुछ और हो न हो, ऐसा करने से वे खुश अवश्य हो जायेंगे. पडौसी अगर खुश हो तो ऐसे समय बड़े काम आता है जब आप घरेलू फटकार खा कर बाहर निकल आये हों और सामान्य होने की प्रक्रिया में किसी से बात करने के इच्छुक हों. इस तरह की विशेष परिस्थितियों में प्रोटोकोल भी आड़े नहीं आता.
आहा !!! अब मेरी छत पर भी धूप आ गई है. वंचित होने का जो अहसास अभी तक तारी था वह समाप्त हो रहा है . मै नामालूम किस्म के आत्मविश्वास से भर रहा हूँ और इसे व्यक्त करने के लिए एक जोरदार अंगडाई लेना चाहता हूँ, ताकि श्याम सुमन मुझे  और मेरी धूप को नोटिस करें. शुरुवाती कोशिशों के बाद मैं खांसता हूँ. खांसना एक कला है, इसकी भी अपनी भाषा होती है जिसमे पारंगत होते होते आदमी अपने को सीनियर सिटीजन की लाइन में बरामद करता है. पहले जब मोबाईल फोन नहीं था लोग एसएमएस की जगह खांस दिया करते थे. हमारे दादा दादी इस खांसी-चेट से बिना किसी की जानकारी में आये बहुत सा संवाद कर लेते थे. मेरी कोशिश मात्र इतनी है कि श्याम सुमन जी एक बार पलट कर देख लें तो उनका अभिवादन हो जाये. आखिर जब दो लोग एक ही सूरज से धूप खा रहे हों तो उनमें एक रिश्ता तो बन ही जाता है.
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शनिवार, 14 जनवरी 2017

मेरे वाट्सएपीया मित्र

इनदिनों जैसे ही सुबह आप फोन खोलते हैं ज्ञान का छप्पर मानों फट पड़ता है और आपको भगवान आदतन याद आ जाते हैं. हमारे आभासी शुभचिंतक  गुड मार्निंग के एक पाउच के साथ चार पोटले ज्ञान के भी पकड़ा जाते हैं. लगता है सबको ज्ञान की हाजत सी हो रही है और हर कोई वाट्सअप के कमोड पर बैठा बस एक ही काम कर रहा है. जहां सोच वहाँ शौचालय से लोग प्रेरित हुए हैं. दूसरों को सुधारने का ईचवन-टीचवन अभियान सा चल पड़ा है. गूढ़ गंभीर संदेशों में उपदेश के आलावा दो बातें और साफ हो जाती हैं, एक तो ये कि आप पूरे नहीं तो थोड़े जाहिल अवश्य हैं  और आपको सीखने की जरुरत है, और वे जहीन हैं सो कृपापूर्वक अपना दायित्व निभा रहे हैं. अब आपमें सलीका हो तो जवाब दे कर उनका आभार मानिये. किसी का संस्कार करना बहुत बड़ा काम है, मानने वाले इसे समाज के निर्माण का ठेका तक माने बैठे हैं. वे जो कर रहे हैं उसी से मनुष्यता के गौरवशाली दिन आयेंगे. ज्ञान का कोई लीगल टेंडर तो होता नहीं कि कोई चिढा हुआ व्यक्ति रात बारह बजे बाद से उन्हें रद्दी घोषित कर दे.  तकनीक इतनी विकसित हो गई है कि मात्र कॉपी पेस्ट करके आदमी महान आत्मा बन सकता है. और ये छोटी मोटी नहीं आत्मविश्वास की बात है. ज्ञान बांटो तो आप जानते ही हैं कि दूसरे का बढ़े ना बढ़े अपना आत्मविश्वाश इतना बढ़ जाता कि पूछिए मत. मन के हारे हार है और मन के जीते जीत. अनुभव बताते हैं कि जो भी मन से हारा वो हमारे सामने ज्ञानचंद बनके उभरा. ये सन्देश है- दीपक बोलता नहीं, उसका प्रकाश ही परिचय देता है. ठीक उसी प्रकार हम अपने बारे में कुछ नहीं बोलेंगे, अच्छे मसेज ही हमारा परिचय देंगे.
इससे कौन इंकार कर सकता है कि जो ज्ञान देता है वो गुरु हुआ. गुरु लोगों का ऐसा है कि वे आदिकाल से ही पूज्य चले आ रहे हैं. हालाँकि नए ज़माने के लीगल-गुरु प्रेक्टिकल हैं और छठे-सातवें वेतनमान के बाद पूज्यता के मिथ्या-मोह से बाहर आ गए हैं. वे जान गए हैं कि जितना मान वेतनमान से अर्जित होता है उसका दस प्रतिशत भी गुरुगिरी से नहीं होता है. फिर आजकल लड़के गूगल की चिमटी से गुरु के कान खींच लेने में देर नहीं करते है. मेसेजबाजी में ये दिक्कत नहीं है. ज्ञान-दंगा चल रहा है, अँधेरे में कुछ पत्थर फैक कर आराम से गुड नाईट कर जाइये. जिसको लगना होगा लग जायेगा, आपको मारने के सुख से कोई वंचित नहीं कर सकता है. उतना ज्ञान तो देना ही पड़ेगा जितने से अपना गुरुभाव बना रहे.

एक गुरु मुझे लगातार दिल की बीमारी से बचने के उपाय भेज रहे हैं. उनका सोचना शायद यह है कि बाकी पुरजो के साथ इनका दिल भी वरिष्ठ हुआ ही है. लेकिन मेरा दिल मनमोहन सिंह की तरह शालीनता से अपना काम कर रहा है. मोटापा और पेट कम करने की जानकारी लगभग रोज आ रही है. भाई आप मोटे नहीं हों तो आगे भेज दीजिए, ये गरीब देश मोटों से भरा पड़ा है. अभी किसीने बताया कि सफ़ेद पैरों वाली काली बकरी के ताजा दूध में सीताफल के बीज घिस कर रोज सुबह लगाने से गंजापन शर्तिया दूर हो जाता है और सर पर इतने बाल आ जाते हैं कि आधार कार्ड दूसरा बनवाने की जरूरत आ पड़ती है. रामबाण उपाय है, अवश्य ट्राय करें. अब मैं रेहड देखते ही जाने अनजाने सफ़ेद पैरों वाली काली बकरी खोजने लगता हूँ. आप यह जान कर भी चौंकते हैं कि आपका हर हिमायती  पत्नी पीड़ित है और उसने अपनी निराशा या कुंठा का ड्रेनेज पाइप वाट्स अप के चेम्बर में जोड़ दिया है. इस मामले में एक समझदार भी मिले, उन्होंने बताया कि चीजें बुरी नहीं होती हैं यदि उसका इस्तेमाल सही तरीके से करें. रोज रोज की किटकिट से परेशान उन्होंने पत्नी को एक फोन उपहार में दे दिया. अब घर में इतनी शांति है कि चाय के लिए भी मेसेज से अनुरोध करते हैं. किसी ने सुझाया कि निराश मत बैठिये, इच्छा हो तो जिंदगी कहीं से भी शुरू की जा सकती है, आप इस मेसेज को आगे बढा कर शुभारंभ कर सकते हैं. एक साप्ताहिक मेसेज है - हजारों हैं मेरे अल्फाज के दीवाने, मेरी ख़ामोशी सुनने वाले आप भी होते तो क्या बात थी. साथ में वैधानिक सूचना यह भी कि रिश्ते खराब होने की एक वजह ये भी है कि लोग मेसेज का जवाब नहीं देते. मुगालते साफ रहें इसके प्रयास भी होते हैं-  आपकी योग्यता आपको  शिखर पर पहुंचने में मददगार हो सकती है  लेकिन शिखर पर बने रहने के लिए आपको अच्छे मेसेज पढ़ना जरूरी हैं. और नाराजी की हद इधर है- कुछ लोग ऊँचा उठने के लिए किस हद तक गिरने को तैयार हो जाते है कि मेसेज का जवाब तक नहीं देते. इतनी जल्दी दुनिया की कोई चीज नहीं बदलती जितनी जल्दी लोगों की नजर बदल जाती है. या फिर एक उलाहना ये भी कि आदमी के शब्द नहीं बोलते, उसका वक्त बोलता है. रात के बारा पैंतालीस हो रहे हैं, गुड नाईट. यानी भाड़ में जाओ .                 ---------------