गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

बालों की चिंता में

साब जी, आपके बाल काफी कम हो गए हैं. पिछली बार और अब में बहुत अंतर है !! नाई, जिसे सब जानी बुलाते हैं, बोला.
ऐसा नहीं है कि बालों के झरने की चिंता अकेले जानी को ही है, थोड़ी बहुत मुझे भी है. किसी ज़माने में इन्हीं बालों की बदौलत देवानंदनुमा फीलिंग ने कितना खयाली रोमांस करवाया याद नहीं. बाद में राजेश खन्ना और अमिताभ के आने तक यही बाल समय के साथ यानी कदम से कदम मिला कर  चलते रहे. लेकिन बाद में पता नहीं क्या हुआ, वे रूठने लगे. शुरुवात शायद दो-चार से हुई हो, अब तो सौ पचास एक साथ पलायन कर रहे हैं. खोपड़ी नहीं हुई गाँव हो गया ठाकुरों का. यही हाल रहा तो कुछ दिनों में बंजर भूमि बिल्डरों के काम की हो जायेगी या फिर हेलीपेड बन जायेगा बाकायदे. इधर सुनाने में आया है कि सोफ्टवेयर कम्पनियां लड़कियों और गंजों को प्राथमिकता से नौकरी देते हैं. बाल न हों तो आदमी मन लगा कर काम करते हैं इसलिए तरक्की भी खूब मिलती है उन्हें. जब तरक्की होती है तो पैसा भी आता है. आप समझ सकते हैं कि जुल्फों वाले आदमी के पास जब दूसरी जगहों पर मन लगाने के अवसर हों तो वह काम में क्यों लगायेगा ! कहते हैं कि कमान से निकला तीर, जुबान से निकला शब्द और सिर से झर बाल वापस नहीं आते हैं. इसलिए कभी कभी सोचता हूँ जाने दो, इस उम्र में अब बालों का करना भी क्या है, ठीक से चले जाएँ तो कुछ साहित्य सेवा कर लें. एक कहानी भी ढंग से लिख ली तो जीवन गुलेरी हो जायेगा. हर चीज की कीमत चुकाना पड़ती है, पाने के लिए कुछ खोना भी पडता है. भगवान भी लिए बगैर देता नहीं है. अब किस्मत खुलने पर अमादा है सो खुल ही जाए तो अच्छा है. आधे तो कमबख्त सफ़ेद हो गए हैं, चुगलखोर कहीं के. आधे हैं जो जमानत देने की असफल कोशिश में मरे जा रहे हैं. आधी फ़ौज से पूरी लड़ाई लड़ना तो वैसे भी संभव नहीं है. ऐसे हालात में अंकल सुनाने की आदत किसे नहीं हो जाती है. हर समझदार आदमी परिस्थितियों में अपने को ढाल लेता है. केशव कह गए हैं अपना दुखडा—“ केशव केसन अस करि,जस अरि हु न कराए; चन्द्र वदन मृग लोचनी, बाबा कहि कहि जाय. अतीत में जीना प्रायः दुखदायी होता है. संत कह गए है कि बीती ताही बिसार दे, आगे की सुध लेय. जानी चिंता व्यक्त कर रहा है और मुझे उसकी चिंता का इतना मान तो रखना ही है.
अब क्या करो भाई, जाने वालों को कौन रोक सकता है. आज बाल जा रहे हैं तो कल किसी दिन आधी रात से बाकी शारीर का भी लीगल टेंडर समाप्त हो जायेगा. उप्पर वाला छापता  ही इसलिए है कि कभी भी रद्दी कागज घोषित कर दे. इसीलिए कहा है जस की तस धर दीन्ही चदरिया.
ऐसा नहीं है साबजी, कोशिश तो करना ही चाहिए इंसान को. लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.
यार जानी !! तुम तो बड़े ज्ञानी हो ! कविता जानते हो !
कवियों की भी बनाते हैं ना साबजी,  हर तरह का नालेज जरुरी है हमारे धंधे में. यूँ समझ लो कि छोटा मोटा गूगल होता कटिंग आर्टिस्ट. .... तो साबजी कोशिश करो.
ऐसा है जानी इसमे अगर कोशिश काम करती तो कोई गंजा नहीं रहता. वो प्रेम कवि प्यारे मोहन अखंड हैं ना, कितनी कोशिश की उन्होंने !! लेकिन कुछ बचा क्या ! खोपड़ी इंटरनेशनल क्रिकेट का पिच हो गई सो अलग.
उनका बहुत दुःख है साबजी, हमारा एक ग्राहक और कम हो गया. अब छह-आठ माह में एक बार आते हैं झालर बनवाने. पुराने ग्राहक सब ऐसे ही होते जा रहे हैं, यह नहीं रुका तो हम झालर आर्टिस्ट हो कर रह जायेंगे.
जानी के मर्म को अब समझ रहा हूँ. घोड़े और घास की यारी का प्रश्न तो तभी है जब घास हो. कहा –“ तुम्हें क्या फर्क पड़ता है जानी, तुम्हारे आगे तो सब सिर होत एक सामान. कवि गए तो युवा ह्रदय सम्राट मिल जायेगें. आजकल तो गली गली में मक्खी मच्छरों की तरह पैदा हो रहे हैं. ... बनाते तो होगे इनकी भी ?
बनाना पड़ती है, .... धंधा ले कर बैठे हैं तो इनसे कोई बचा है क्या !! लेकिन कभी सुने हैं आप कि मक्खी मच्छर पेमेंट भी करते हैं !!
क्या करो भाई, देशभक्ति का रास्ता बड़ा टेढा है. सिर्फ इंसानियत से काम थोड़ी चलता है. लेकिन तुम्हारी बददुआ लगी तो ये भी गंजे हो जायेंगे एक दिन. देख लेना. मैंने तसल्ली दी.
मुश्किल है, .... ये लोग कई कामों के लिये आयुर्वेद का लाभ लेते है, उससे बाल भी ठीक हो जाते हैं. आप भी ले कर देखो.
तुम्हें कैसे मालूम कि आयुर्वेद में गंजेपन का इलाज है ?
आपने भगवानों के फोटू देखे हैं ना, आज तक एक भी भगवान गंजा देखा क्या ? सबके लंबे बाल हैं , यहाँ तक कि नारद जी के भी . इसका मतलब हुआ कि आयुर्वेद में इसका इलाज है.
भगवान लोग की तो दाढ़ी-मूंछे भी नहीं होती थीं, तो ... ?
साबजी हम लोगों का काम देवकाल से ही चलता आ रहा है ना. वो तो भगवान ने अवतार लिया तो बैधराजों के साथ हमारे पुरखों को भी आना पड़ा.
तुम तो गूगल हो ना, तुम्हीं बताओ क्या इलाज है.
गूगल तो सिर्फ रामदेव का पता बता सकता है. वो तो आप जानते ही हैं .
छोडो यार, अब आया बुढ़ापा, सीनियर सिटीजन हैं, थोड़ा लगना भी तो चाहिए वरना रेल यात्रा में टीसी सारे कागज देखने के बाद भी विश्वास नहीं करता है. फोकट चोर बनना पड़ता है.
इसी लापरवाही के कारण अब जवान भी गंजे हो रहे हैं. कभी सारे आदमी गंजे हो गए तो हमारे बच्चे भूखे मर जायेंगे. रहीम ने कहा है साबजी कि रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार ; रहिमन फिरि फिरि पोइए , टूटे मुक्ता हार.
मेरी कटिंग हो गई, उठते हुए जानी को भरोसा देता हूँ तुम्हारी बात ठीक है जानी, कोई अच्छा सा बैध हो तो बताना, कोशिश करके तो देखा ही जा सकता है.
------


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें