शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

नए साल पर एक चिकनिया चिंतन


नया साल आ रहा है तो इसमें कोई नई बात तो है नहीं, हर साल आता है. लेकिन इधर फलसफा ये कि सामान सौ बरस का और खबर पल भर की नहीं. एक समय ऐसा आता है जब जीवन पर से विश्वास कम होने लगता है. रोज सुबह उठ के आइना देखते हैं कि हाँ, वाकई हैं अभी. बशीर बद्र ने कहा है कि उजाले अपनी यादों  के साथ रहने दो, न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाये. और इधर सुबह से सातवाँ फोन इस सवाल के साथ आया कि कैसे मना रहे हो ?
हम लोग मनाने के मामले में दुनिया से चार कदम आगे ही होते हैं. जीत मनाना हो या कि उत्सव, हर समय बेगानी शादी में अब्दुल्ले दीवाने. मौका अपना हो या पराया मिलने भर की देर है बस. यों समझिए कि ताक में ही बैठे होते हैं. जिनके जीवन में कुछ भी नया नहीं आता, नया साल उनके लिए भी आता ही है. कोई इस बात को ले कर घिस घिस करे कि नये साल में भला नया क्या है ? तो करता रहे, उसकी समस्या है. लेकिन उनकी बात में कुछ दम तो है, नए साल में पुराना भी कायम रहे तो गनीमत है, किसी से भी पूछ लो यही कहेगा कि पन्द्रह साल पहले जिंदगी अच्छी थी. इस हिसाब से तो नया दुश्वारियां ले कर आता है तो उसका स्वागत क्यों !?
फोन आ रहे हैं तो मित्रों को बताना ही पड़ेगा कि कैसे मना रहे हो ?.
  पुराना कोई लेखक लिखता तो उसकी पंक्तियां  होतीं कि भारत एक मनाऊ देश है, यहाँ लोग मनाने के लिए पैदा होते हैं. आदमी खाने से रह जाये मनाने से नहीं रह सकता है. जिन्हें मनाने का कारण नहीं पता होता है वो दूसरों को देख कर मनाने लगते हैं. जिन्हें कारण पता होता है लेकिन नहीं मनाना चाहते हैं, वे भी डर के मारे मनाने लगते हैं. जो सहमत होते हैं  वे सहमति के साथ मनाते हैं और जो असहमत होते हैं  वे अपनी असहमति के साथ मना लेते हैं. लेकिन मैं इतना पुराना नहीं हूँ, देखता हूँ कि यहाँ जो भी कुछ होता है व्यापक पैमाने में होता है. अब नया साल सामने है तो पैमाना छोटा कैसे हो सकता है. सरकार कहे , या वे ही क्यों न कहें जिनके हाथ में सरकार का रिमोट कंट्रोल है कि हमारा नया साल ये नहीं है, फिर भी नया साल पूरा देश मनाएगा. मनाने वालों को मनाने का बहाना चाहिए. आपने गौर नहीं किया होगा कि नया साल सेक्युलर है, हिंदू ,मुसलमान, गोरे-काले सबके लिए आता है. आमिर हों या गरीब, दोनों एक तरह से मनाते हैं, बोतल-ब्रांड का फर्क हो सकता है तो होता रहे.
फोन फिर आया, - हेलो, क्या यार अभी तक आपने बताया नहीं कि नए साल का क्या प्रोग्राम है ?
पूरे साल का प्रोग्राम कैसे बता सकता हूँ जबकि मैं तो पूरे दिन का प्रोग्राम भी नहीं बनाता. मैंने जानबूझ कर घुमाऊ सा जवाब दिया.
फिर भी, कुछ तो करोगे ? क्या सोचा है ?
सोचा तो कुछ भी नहीं, आप बताओ ?
पार्टी करेंगे और क्या ! कहो तो तुम्हारे यहाँ आ जाएँ ?
सोच कर बताता हूँ . कह कर फोन रखा. सोचने लगो तो कुछ भी विचार आ सकते हैं. अचानक मुझे मुर्गों का ध्यान हो आया जो नए साल में अपनी पुरानी काया छोड़ कर नया शारीर धारण करने के लिए प्रस्थान करेंगे. पता नहीं वे जानते हैं या नहीं नए साल के मायने. जिन्दा मुर्गे मुझे बहुत अच्छे लगते हैं. क्या तो उनकी किस्मत होती है, तमाम मुर्गियों के बीच अकेला मायकल जेक्सन सा अश्लील हरकतें करता कि देखने वाला रश्क कर जाये. नए साल में कितनी मुर्गियां विधवा होती होंगी पता नहीं. अभी कुछ दिन पहले तक शाहरुख नाम का एक सुंदर बकरा गली में बच्चों के साथ खेला करता था. पता नहीं अब कहाँ होगा. किसी सेलिब्रिटी के यहाँ पैदा हुआ होगा तो सीधे ब्रेकिंग न्यूज और हेड लाइन्स में जिन्दा हुआ होगा. गीता में कहा गया है कि आत्मा पुराने वस्त्र को छोड़ कर नए वस्त्र धारण करती है . क्या इन प्राणियों को आभारी होना चाहिए हमारा-तुम्हारा, नए साल के जश्न का. विडंबना ये है कि गीता वे नहीं जानते. गीता मारने वालों को प्रेरित करती है और जिन्हें मरना है उनके पक्ष में भगवान नहीं बोले. खैर ..... मुझे क्या ! मैं अक्सर गूढ़ प्रसंगों से मुंह छुपा लेता हूँ. समझदारों के बीच बैठो-उठो तो व्यावहारिकता के सारे गुण आ जाते हैं. और फिर मैं कौन सा यमदूत हूँ जो मरने-जीने का हिसाब किताब रखता फिरूं. संसार एक सराय है, जिसे आना है आएगा, जिसे जाना है जायेगा. कुछ फर्क नहीं पड़ता कि साल नया है या कि दिन नया. जब आखिरत होती है तो कुछ भी ठीक नहीं होता. बच्चन कह गए हैं,--इस पर प्रिये मधु है, तुम हो, ... उस पार न जाने क्या होगा.
पत्नी से पूछता हूँ. वो क्या है कि जब कुछ ठीक सूझ नहीं रहा हो तो समझदार लोग अक्सर पत्नी से पूछ लिया करते हैं. इसका लाभ यह होता है कि निर्णय गलत हुआ तो जिम्मेदारी उन पर नहीं आती है. दूसरा ये कि निर्णय को मूर्त रूप देने की जिम्मेदारी से भी वे बच सकते हैं. तीसरा वे सभ्य समाज में नारी को बराबर का महत्व और सम्मान देने वाले प्रगतिशील पुरुष की हैसियत पा जाते हैं. और चौथा ..... अब छोडिये, इतने तो लाभ हैं और आप नहीं जानते ऐसा भी तो नहीं हैं. हाँ तो पत्नी से पूछा कि भई, नए साल में इस बार क्या करने वाली हो ?
कुछ देर बाद वे बोलीं –“ इस बार सत्यनारायण की कथा करवा लें तो कैसा रहे ?
फोन फिर बजा –“ हाँ तो क्या सोचा बे ?
सत्यनारायण की कथा करवाने की सोच रहे हैं.
अबे तू आदमी है कि पजामा .... उधर से फोन पटकने की आवाज आई .
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गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

बालों की चिंता में

साब जी, आपके बाल काफी कम हो गए हैं. पिछली बार और अब में बहुत अंतर है !! नाई, जिसे सब जानी बुलाते हैं, बोला.
ऐसा नहीं है कि बालों के झरने की चिंता अकेले जानी को ही है, थोड़ी बहुत मुझे भी है. किसी ज़माने में इन्हीं बालों की बदौलत देवानंदनुमा फीलिंग ने कितना खयाली रोमांस करवाया याद नहीं. बाद में राजेश खन्ना और अमिताभ के आने तक यही बाल समय के साथ यानी कदम से कदम मिला कर  चलते रहे. लेकिन बाद में पता नहीं क्या हुआ, वे रूठने लगे. शुरुवात शायद दो-चार से हुई हो, अब तो सौ पचास एक साथ पलायन कर रहे हैं. खोपड़ी नहीं हुई गाँव हो गया ठाकुरों का. यही हाल रहा तो कुछ दिनों में बंजर भूमि बिल्डरों के काम की हो जायेगी या फिर हेलीपेड बन जायेगा बाकायदे. इधर सुनाने में आया है कि सोफ्टवेयर कम्पनियां लड़कियों और गंजों को प्राथमिकता से नौकरी देते हैं. बाल न हों तो आदमी मन लगा कर काम करते हैं इसलिए तरक्की भी खूब मिलती है उन्हें. जब तरक्की होती है तो पैसा भी आता है. आप समझ सकते हैं कि जुल्फों वाले आदमी के पास जब दूसरी जगहों पर मन लगाने के अवसर हों तो वह काम में क्यों लगायेगा ! कहते हैं कि कमान से निकला तीर, जुबान से निकला शब्द और सिर से झर बाल वापस नहीं आते हैं. इसलिए कभी कभी सोचता हूँ जाने दो, इस उम्र में अब बालों का करना भी क्या है, ठीक से चले जाएँ तो कुछ साहित्य सेवा कर लें. एक कहानी भी ढंग से लिख ली तो जीवन गुलेरी हो जायेगा. हर चीज की कीमत चुकाना पड़ती है, पाने के लिए कुछ खोना भी पडता है. भगवान भी लिए बगैर देता नहीं है. अब किस्मत खुलने पर अमादा है सो खुल ही जाए तो अच्छा है. आधे तो कमबख्त सफ़ेद हो गए हैं, चुगलखोर कहीं के. आधे हैं जो जमानत देने की असफल कोशिश में मरे जा रहे हैं. आधी फ़ौज से पूरी लड़ाई लड़ना तो वैसे भी संभव नहीं है. ऐसे हालात में अंकल सुनाने की आदत किसे नहीं हो जाती है. हर समझदार आदमी परिस्थितियों में अपने को ढाल लेता है. केशव कह गए हैं अपना दुखडा—“ केशव केसन अस करि,जस अरि हु न कराए; चन्द्र वदन मृग लोचनी, बाबा कहि कहि जाय. अतीत में जीना प्रायः दुखदायी होता है. संत कह गए है कि बीती ताही बिसार दे, आगे की सुध लेय. जानी चिंता व्यक्त कर रहा है और मुझे उसकी चिंता का इतना मान तो रखना ही है.
अब क्या करो भाई, जाने वालों को कौन रोक सकता है. आज बाल जा रहे हैं तो कल किसी दिन आधी रात से बाकी शारीर का भी लीगल टेंडर समाप्त हो जायेगा. उप्पर वाला छापता  ही इसलिए है कि कभी भी रद्दी कागज घोषित कर दे. इसीलिए कहा है जस की तस धर दीन्ही चदरिया.
ऐसा नहीं है साबजी, कोशिश तो करना ही चाहिए इंसान को. लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.
यार जानी !! तुम तो बड़े ज्ञानी हो ! कविता जानते हो !
कवियों की भी बनाते हैं ना साबजी,  हर तरह का नालेज जरुरी है हमारे धंधे में. यूँ समझ लो कि छोटा मोटा गूगल होता कटिंग आर्टिस्ट. .... तो साबजी कोशिश करो.
ऐसा है जानी इसमे अगर कोशिश काम करती तो कोई गंजा नहीं रहता. वो प्रेम कवि प्यारे मोहन अखंड हैं ना, कितनी कोशिश की उन्होंने !! लेकिन कुछ बचा क्या ! खोपड़ी इंटरनेशनल क्रिकेट का पिच हो गई सो अलग.
उनका बहुत दुःख है साबजी, हमारा एक ग्राहक और कम हो गया. अब छह-आठ माह में एक बार आते हैं झालर बनवाने. पुराने ग्राहक सब ऐसे ही होते जा रहे हैं, यह नहीं रुका तो हम झालर आर्टिस्ट हो कर रह जायेंगे.
जानी के मर्म को अब समझ रहा हूँ. घोड़े और घास की यारी का प्रश्न तो तभी है जब घास हो. कहा –“ तुम्हें क्या फर्क पड़ता है जानी, तुम्हारे आगे तो सब सिर होत एक सामान. कवि गए तो युवा ह्रदय सम्राट मिल जायेगें. आजकल तो गली गली में मक्खी मच्छरों की तरह पैदा हो रहे हैं. ... बनाते तो होगे इनकी भी ?
बनाना पड़ती है, .... धंधा ले कर बैठे हैं तो इनसे कोई बचा है क्या !! लेकिन कभी सुने हैं आप कि मक्खी मच्छर पेमेंट भी करते हैं !!
क्या करो भाई, देशभक्ति का रास्ता बड़ा टेढा है. सिर्फ इंसानियत से काम थोड़ी चलता है. लेकिन तुम्हारी बददुआ लगी तो ये भी गंजे हो जायेंगे एक दिन. देख लेना. मैंने तसल्ली दी.
मुश्किल है, .... ये लोग कई कामों के लिये आयुर्वेद का लाभ लेते है, उससे बाल भी ठीक हो जाते हैं. आप भी ले कर देखो.
तुम्हें कैसे मालूम कि आयुर्वेद में गंजेपन का इलाज है ?
आपने भगवानों के फोटू देखे हैं ना, आज तक एक भी भगवान गंजा देखा क्या ? सबके लंबे बाल हैं , यहाँ तक कि नारद जी के भी . इसका मतलब हुआ कि आयुर्वेद में इसका इलाज है.
भगवान लोग की तो दाढ़ी-मूंछे भी नहीं होती थीं, तो ... ?
साबजी हम लोगों का काम देवकाल से ही चलता आ रहा है ना. वो तो भगवान ने अवतार लिया तो बैधराजों के साथ हमारे पुरखों को भी आना पड़ा.
तुम तो गूगल हो ना, तुम्हीं बताओ क्या इलाज है.
गूगल तो सिर्फ रामदेव का पता बता सकता है. वो तो आप जानते ही हैं .
छोडो यार, अब आया बुढ़ापा, सीनियर सिटीजन हैं, थोड़ा लगना भी तो चाहिए वरना रेल यात्रा में टीसी सारे कागज देखने के बाद भी विश्वास नहीं करता है. फोकट चोर बनना पड़ता है.
इसी लापरवाही के कारण अब जवान भी गंजे हो रहे हैं. कभी सारे आदमी गंजे हो गए तो हमारे बच्चे भूखे मर जायेंगे. रहीम ने कहा है साबजी कि रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार ; रहिमन फिरि फिरि पोइए , टूटे मुक्ता हार.
मेरी कटिंग हो गई, उठते हुए जानी को भरोसा देता हूँ तुम्हारी बात ठीक है जानी, कोई अच्छा सा बैध हो तो बताना, कोशिश करके तो देखा ही जा सकता है.
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