सोमवार, 26 सितंबर 2016

फटकार वही जो सुप्रीम कोर्ट लगाये


सुप्रीम कोर्ट घर में भी होती है और मौके-बेमौके फटकार भी लगती है . यहाँ बात की बारीकी को समझें जरा, जो लोग मौका देते हैं उन्हें मौके मौके पर फटकार लगती है लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो मौका नहीं देते हैं वे बकायदा बेमौके फटकारे जाते हैं. देश की सुप्रीम कोर्ट का काम भी इन दिनों बढ़ गया लगता है. लगभग रोज ही किसी न किसी को फटकारे जाने की खबर छप रही है. हाल ही में किसी बेसहारा हो चुके समूह के मुखिया अपने वकील समेत फटकारे जा चुके हैं. बड़ा आदमी फटकारा जाये तो ब्रेकिंग न्यूज बनती है. सुप्रीम कोर्ट की फटकार से छोटा आदमी भी फट्ट से महान हो जाता है तो फिर बड़े आदमी के क्या कहने. अखबार में उसकी कलर फोटो छपती है और लोग देखते हैं कि वह चमकीले दांतों के साथ मुस्करा भी रहा है. हमारे यहाँ ऐसे पहुंचे हुए बाबा हो चुके है जिनकी लात खा कर लोग सांसद तक बन गए. करोड़पतियों ने भी लात खाई और अरबपति हो गए. लेकिन गरीब ने लात खाई तो वह और गरीब हो गया. बाबा से शिकायत की तो वे बोले जिसके पास जो होता है उसे लात मार कर मैं और बढा देता हूँ. गरीब से कहो कि वह अपनी गरीबी ले कर नहीं आये. कुछ चोर-उचक्के किस्म के लात खा आये, उनमें से अनेक आज डान, भाई या बाहुबली नाम से पहचने जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट की फटकर लात से काम नहीं है, पड़ते ही जेल जाते आदमी की जमानत हो जाती  है और वो दो ऊँगली दिखता बहार आ जाता है.
इधर बिहार में तो फटकार आशीर्वाद का काम करती दिखाई देती है. किसी जमाने में परिवार नियोजन को लेकर दुनिया भर की फटकार सहेजने वाला आज अपने पूरे कुनबे के साथ राजनीति करते हुए जनता की सेवा कर रहा है. यह कोई छोटी बात नहीं है, होनहार वो देख लेते हैं जो दूसरे नहीं देख पाते हैं. अब देखिये, सुप्रीम कोर्ट ने इधर भी तेजपाल नाम के एक मंत्री को फटकार लगाई और नोटिस दिया कि उन्होंने अपराधियों को पाल रखा है, खासकर उन अपराधियों को जिन पर हत्या के आरोप हैं. सुप्रीम कोर्ट में विद्वान बैठते है, जमीनी हकीकत से वो दूर होते हैं. उन्हें यह नहीं पता कि नेता अपराधियों को पालते हैं या अपराधी नेताओ को पालते हैं . किसी नामालुमुद्दीन के बारे में सुना होगा आपने. बताइए जरा, उसे नेताओं ने पाल रखा हैं या कि उसने नेतटट्टे पाल रखे हैं. सुनने में तो यह आता है कि हर अपराधी की जेब में दो-चार नेतटट्टे पड़े रहते हैं. विद्वानों को क्या पता, न अपराधियों से उनका नाता, न ही नेताओं से. उनका काम फटकारना है सो फटकार दिया. इधर फटकार पड़ते छुटके से मंत्री बड़का गए और दन्न से बोल दिए कि हमको क्या पता कि कौन अपराधी है और कौन नहीं. किसी के माथा पर तो लिखा नहीं होता है. हमारे साथ रोजाना ह्ज्जारो आदमी फोटू खिंचवाता है, हमको कोई याद रहता है कि कौन आ कर पास में खड़ा हो गया. पप्पाजी बयान सुने तो खुस हो गए, बोले लरिका एक्को फटकार में गियानी हो गया है, सुवास्थ मंत्रालय छोटा पड़ रहा है. मूखमंत्री नहीं तो कम से कम होम मिनिस्टर तो बनाना तो बहुते जरूरी हो गया है. सुप्रीम कोर्ट का फटकार ऐरे गेरे को नहीं ना पडती है.


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