शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

सब खाएंगे तो सोच बदलेगी

जिस वक्त देश में आतंकी हमला हुआ और हमारे जवानों के  शहीद हो जाने से लोग आहत थे, तब उनका बयान आया कि भईया, मेरे खिलाफ मुकदमा इसलिए दर्ज करवाए जा रहे हैं क्योंकि में देश के गरीबों, बेरोजगार युवाओं और  किसानों के हक के लिए लड़ रहा हूँ . किसी ने बीच में बोल कर याद दिलाया कि देश के हमारे सिपाही सीमा पर लड़ रहे हैं. आप क्या कहना चाहेंगे ?
वे बोले –“ आतंकी हमले हों या चुनाव सर पर हों, जवाबदार लोगों को लडना ही पड़ता है. दोनों इज्जत के लिए जी जान लगा देते हैं . लेकिन एक के साथ सरकार होती है, देश होता है और दूसरे के साथ पार्टी के लोग भी नहीं होते हैं . आसानी से समझा जा सकता है कि बड़ी लड़ाई कौन लड़ रहा है. .... देखो भईया, ऐसा है कि आपके प्रधानमंत्री जी करते तो बड़ी बड़ी बातें हैं लेकिन अभी तक अच्छे दिन आये नहीं हैं . आरोप नहीं लगा रहा हूँ, पूरे यकीन  के साथ कह रहा हूँ , मेरे तो नहीं आये हैं. आपकी आप लोग जानें. लेकिन पार्टी कार्यालय में किसी ने मुझे बताया कि जनता के भी अच्छे दिन अभी नहीं आये हैं. सच बात तो ये है कि हम भी नहीं चाहते हैं कि जब तक हम सत्ता में नहीं आते किसी के अच्छे दिन आयें . मम्मी कहती है कि एक बार तुम कुर्सी पर बैठ जाओ तो हमारे अच्छे दिन आ जायेंगे. रोज रोज के मुकदमों से वो भी बहुत तंग आ चुकी हैं. मम्मी को मैं कहता हूँ कि देखो भईया मै पूरे प्रयास कर रहा हूँ. प्रयास करना बड़ी बात है, हार-जीत तो जनता के हाथ  में होती है.
एक पत्रकार ने पूछा - कुंवर जी, गरीबों, बेरोजगारों और किसानों के लिए आपके पास क्या योजनाएं  हैं ?
देखो ऐसा है, गरीबों को हम कहेंगे कि भईया गरीब लोगों, तुम सबसे पहले अपनी सोच बदलो. जो लोग सोच नहीं बदलते वो आलरेडी गरीब होते हैं , गरीब बने रहते हैं. सोचने के लिए हम उन्हें चाकलेट की सुविधा देंगे. आप जानते होंगे कि चाकलेट खाने से सोचने कि छमता बढ़ जाती  है. ... आप मुझे देखिये , आज मैं जो भी हूँ चाकलेट के कारण हूँ. अगर हमारी सरकार बनी तो हम चाकलेट को टेक्स फ्री कर देंगे. गरीबों, किसानो और बेरोजगारों को चाकलेट फ्री बाँटेंगे ....
लेकिन सर, कुछ सरकारें लेपटाप और स्मार्ट फोन फ्री बाँट रही हैं !! किसी ने सवाल दागा .
देखो भईया, आप लोग भी अपनी सोच बदलो. लेपटोप और स्मार्ट फोन कोई खा सकता है क्या ? खाने से सोच बदलती है. जिनको खाने के बारे में ठीक ठीक ज्ञान नहीं है वही राजनीति को भी गन्दी कहते हैं. सब खाएंगे तो सोच बदलेगी, देश बदलेगा. जनता को हम खाना सिखाएंगे और इसकी शुरुवात चाकलेट से करेंगे. हमारा देश साधू-संतों और फकीरों का देश है. उनके पास  खाने पहनने को नहीं होता है लेकिन मस्त रहते हैं. ऐसा सोच के कारण होता है. एक बार पार्टी ने नारा दिया था कि गरीबी-हटाओ, अब हमारा नारा होगा अपनी सोच-बदलो.
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सोमवार, 26 सितंबर 2016

फटकार वही जो सुप्रीम कोर्ट लगाये


सुप्रीम कोर्ट घर में भी होती है और मौके-बेमौके फटकार भी लगती है . यहाँ बात की बारीकी को समझें जरा, जो लोग मौका देते हैं उन्हें मौके मौके पर फटकार लगती है लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो मौका नहीं देते हैं वे बकायदा बेमौके फटकारे जाते हैं. देश की सुप्रीम कोर्ट का काम भी इन दिनों बढ़ गया लगता है. लगभग रोज ही किसी न किसी को फटकारे जाने की खबर छप रही है. हाल ही में किसी बेसहारा हो चुके समूह के मुखिया अपने वकील समेत फटकारे जा चुके हैं. बड़ा आदमी फटकारा जाये तो ब्रेकिंग न्यूज बनती है. सुप्रीम कोर्ट की फटकार से छोटा आदमी भी फट्ट से महान हो जाता है तो फिर बड़े आदमी के क्या कहने. अखबार में उसकी कलर फोटो छपती है और लोग देखते हैं कि वह चमकीले दांतों के साथ मुस्करा भी रहा है. हमारे यहाँ ऐसे पहुंचे हुए बाबा हो चुके है जिनकी लात खा कर लोग सांसद तक बन गए. करोड़पतियों ने भी लात खाई और अरबपति हो गए. लेकिन गरीब ने लात खाई तो वह और गरीब हो गया. बाबा से शिकायत की तो वे बोले जिसके पास जो होता है उसे लात मार कर मैं और बढा देता हूँ. गरीब से कहो कि वह अपनी गरीबी ले कर नहीं आये. कुछ चोर-उचक्के किस्म के लात खा आये, उनमें से अनेक आज डान, भाई या बाहुबली नाम से पहचने जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट की फटकर लात से काम नहीं है, पड़ते ही जेल जाते आदमी की जमानत हो जाती  है और वो दो ऊँगली दिखता बहार आ जाता है.
इधर बिहार में तो फटकार आशीर्वाद का काम करती दिखाई देती है. किसी जमाने में परिवार नियोजन को लेकर दुनिया भर की फटकार सहेजने वाला आज अपने पूरे कुनबे के साथ राजनीति करते हुए जनता की सेवा कर रहा है. यह कोई छोटी बात नहीं है, होनहार वो देख लेते हैं जो दूसरे नहीं देख पाते हैं. अब देखिये, सुप्रीम कोर्ट ने इधर भी तेजपाल नाम के एक मंत्री को फटकार लगाई और नोटिस दिया कि उन्होंने अपराधियों को पाल रखा है, खासकर उन अपराधियों को जिन पर हत्या के आरोप हैं. सुप्रीम कोर्ट में विद्वान बैठते है, जमीनी हकीकत से वो दूर होते हैं. उन्हें यह नहीं पता कि नेता अपराधियों को पालते हैं या अपराधी नेताओ को पालते हैं . किसी नामालुमुद्दीन के बारे में सुना होगा आपने. बताइए जरा, उसे नेताओं ने पाल रखा हैं या कि उसने नेतटट्टे पाल रखे हैं. सुनने में तो यह आता है कि हर अपराधी की जेब में दो-चार नेतटट्टे पड़े रहते हैं. विद्वानों को क्या पता, न अपराधियों से उनका नाता, न ही नेताओं से. उनका काम फटकारना है सो फटकार दिया. इधर फटकार पड़ते छुटके से मंत्री बड़का गए और दन्न से बोल दिए कि हमको क्या पता कि कौन अपराधी है और कौन नहीं. किसी के माथा पर तो लिखा नहीं होता है. हमारे साथ रोजाना ह्ज्जारो आदमी फोटू खिंचवाता है, हमको कोई याद रहता है कि कौन आ कर पास में खड़ा हो गया. पप्पाजी बयान सुने तो खुस हो गए, बोले लरिका एक्को फटकार में गियानी हो गया है, सुवास्थ मंत्रालय छोटा पड़ रहा है. मूखमंत्री नहीं तो कम से कम होम मिनिस्टर तो बनाना तो बहुते जरूरी हो गया है. सुप्रीम कोर्ट का फटकार ऐरे गेरे को नहीं ना पडती है.


रविवार, 18 सितंबर 2016

एक जिम्मेदार आदमी का अंतिम पत्र



पुलिस ने सुसाइट-नोट पढ़ा।
शुरू में लिखा था .....‘‘ प्यारी जोजो ....।’’
‘‘ ये जोजो कौन है बे !? ’’ साहब ने सामने खड़े व्यक्ति से पूछा।
‘‘ हमारी भाभी हैं, ..... भइया भाभी को जोजो नाम से ही बुलाते थे। ’’
‘‘ जोजो क्यों !? इस तरां का नाम तो होता नहीं है इधर !’’
‘‘ वो क्या है सर जी, भाभी हर बात में जो हेकि, जो हेकिबोला करती थी। इसलिए .....’’
‘‘ तुम्हारे भाई की राइटिंग अच्छी नहीं है ! तुम पढ़ सकते हो ?’’
‘‘ हां जी ।’’
‘‘ पढ़ के सुनाओ तो जरा।’’
हमाई पियारी जोजो,
हमें माफ कर देना, अब हम जा रए हें । जे दुनिया अच्छे आदमी के लाने तो हइये नईं। हमाई तो दुस्मन बनी पड़ी है, भर पाए हम तो। पर देखो तुम चिंता करना मती, और टैम पे खा-पी लिया करना नहीं तो बीमार पड़ जाओगी। घर में अम्मा लगी पड़ी हैं खाट से और दद्दा भी उठै-बैठै से टोटल-लाचार चल रए हैं। काम तो तुम बीमार पड़ै में भी कर लेती हो दिन-रात। पर तुम ठीक रहोगी तभी ना उनका ख्याल रख सकोगी अच्छे से। सास-सुसुर हैं तुमारे, सेवा का फरज तो बनतई है, ...... है कि नईं। खाबै के मामले में तुमाई आदत अच्छी नईं है। एक तो सबसे आखरी में खाती हो, इसलिए कम मिलता है, कभी कभी तो मिलताई नईं है। तुम तो हमें बताती नईं हो ....... पर हम जानते सब हैं। अब तुम तो जे नियम-घरम, सरम-वरम सब छोंड़ दो, ...... हमीं नईं रहे तो आखरी में खाबै का मतलब का है, बताओ  ? सई हैकि नईं ? हमाई  मानो तुम तो पहले खा लिया करो चुप्पे से। नहीं तो उप्पर स्वरग में हमें तुमाई बड़ी फिकिर लगी रहेगी। और जे तुम जान लो कि फिकिर में हम कोई आराम थोड़ी कर पाएंगे वहां। तुमै, पता नईं है, हमारे लाने स्वरग में भोत काम लगा पड़ा रैगा। उप्पर से तुमाई फिकिर। वहां तो मरै का मौका भी नईं मिलेगा, ये सोची हो तुम । बहुत मुस्किल जिनगी होती है मरै के बाद की। इत्ता तो जानती होगी .... कि नईं।
एसा नईं ना सोचना कि तुमको हम बेसहारा छोड़े जा रए हें। सात बच्चे हैं, जो आगे चल के तुमारा सहारा बनेंगे। चार ठौ मोड़े हें ..... राज करोगी तुम तो .... और तीन ठौ मोड़ियां हैं। तो जान लो कि अपनी सरकार भी कै रही है कि मोड़ा-मोड़ी सब बरोबर होत हैं। ...... खुस तो हो ना तुम ? ...... देखो भागवान, जित्ता हमसे बना उत्ता कर दिया हमने। ...... तो समझ लो कि सातों के सातों मोड़े हैं तुमारे। अच्छे इसकूल भेजना सबको। खूब पढ़ाना लिखाना, हाँ । फिर देखना बिरादरी में कित्ती इज्जत होती है तुमाई। बिरादरी वाले आदमी को देख के कल्लाते हें पर गरीब ओरत की तो बड़ी इज्जत करते हें। फिर तुम तो अब बिधवा हो जाओगी .... तो बैसेई पंच पियारी रहोगी।
जान लेओ कि छोटू और जग्गू की फिकिर हमको बहुत है। जरा कमजोर हैं। तुम ठीक से अपना दूध पिलातीं तो निकल आते ससुर के नाती, पर तुमने हमाई सुनी कब। चलौ जो हो गया सो हो गया, गलती इंसान सेई होती है। अब हो सके तो उनके लिए एक ठौ गइया पाल लेना। दूध पीयेंगे तो टनटना जाएंगे गबरू समान। .... हमै का, हम तो जा रए हें, तुमाए ही काम आएंगे। हम हमाए लाने तो कुछ कै नहीं रए।
और देखो रानी, ... गुलाबो और गेंदा दोनों का ब्याह टैम पे कर देना। जवान होने बाली हैं। तुम तो जानती हो आजकल जमाना अच्छा नईं है। दबंगों के लौंडे बहुत बिगड़े हुए हैं। उनके लाने गारी निकरती है मुंह से, हमैं तो उन लोगों ने दो कौड़ी का नईं समझा। पर तुम बड़ी हिम्मत वाली हो। मोर्चा ले लोगी उन सबही से। और देखो, ..... सादी-ब्याह की चिंता तो समझो कि हैयेई नईं, .... सरकार मामा है, करवा देगी मजे में। .... घर-बर अच्छा ढूंढना, ऐरे गैरे के पल्ले मत बांध देना। बिन बाप की लड़कियां हैं तो दयालू घर भी मिल जाएंगे आराम से। इतना तो नाम है हमारा। ... और जो भी सुनेगा कि फांसी लगा के मरे हैं तो पसीज जाएगा। अरे हां, फांसी से याद आया कि घिसिया की दुकान से हम रस्सी ले लिए हैं उधार, लटकने के वास्ते। उसका पैसा मांगे तो नईं देना, रस्सी लौटा देना। .... पर बापस करने से पहले एक बार अम्मा और दद्दा से पूछ लेना। पता नहीं रस्सी के लाने ही बैठे कल्ला रहे हों।
जोजो रानी, तुमाए से हमने कभी कुछ छुपाया नईं ..... पर अब जाते जाते बता दें कि तुमाए चांदी के कड़े जो तिपाई वाले कोने में तुम गाड़ रखी थीं वो हमने बहुत पहले खोद के बेंच दिए थे। रमईराम से कर्जा लिए हैं ये तो तुमैं पता है ना। अरे पचीस हजार बताए थे ना हम ? देखो तुम बरदास कर जाओ इसलिए पचीस बताए थे, सच्ची बात तो जे है कि पच्चास हजार लिए थे और अब बढ़ के दो लाख हो गया है। तुम जानती तो हो साहुकरों का ब्याज बट्टा। हमाए बस की बात नहीं थी और ना हम दोसी हैं इस रकम के। इसी चिंता में हम घुले जा रहे थे। पर तुम चिंता मत करना और रोना भी नहीं। .... बने तो धीरे धीरे चुका देना मजे में। लछमी हो तुम तो, ..... नहीं बने तो वो खुद ही घर ले लेगा, ..... हमने घर गिरवी लिखा दिया है, तुमको कुछ परेसानी नईं होगी। रकम से हमने दारू वाले का पूउरा चुकता कर दिया है, नईं तो वो बदमास तुमैं परेसान करते, मानते थोड़ी। हां, थोड़ी रकम जुए में चली गई है, सो उसके लिए हाथ जोड़ के माफी मांगते हैं। तुम अगर बरत-उपवास करतीं, पूजा-पाठ और नेम-धरम करतीं तो पासे हमारी तरफ गिरते और घर के दलिद्दर दूर होते, तुम और तुमाए बच्चा-बुच्ची आराम से रहते। पर ठीक है जैसी तुमाई इच्छा, हम तो जा रहे हैं अब, तुमाए मन में जैसा आए वैसा करो। हमारा कोई दखल नईं रहेगा किसी काम में। तुम खुस रहो और हमको क्या चहिए। येई फिकिर में मरै जा रए हैं हम।
हमारा-तुमारा साथ इत्ताई था, देखो रोना नईं ..... पर सुनो तनिक, ..... जे नईं रोने का बोल दिया तो लकीर की फकीर मती हो जाना, .... लोक दिखाबे के लाने थोड़ा रो लेना, नहीं तो मस्त हो जाओ ..... अरे हां, ....तुम ठहरी मजबूत औरत, कई दफे तो हमेई पीट चुकी हो। हमने बताया नहीं पर सच्ची कहते हैं तुमाए हाथन की बड़ी जोर की लगती है। वो तो हमई रहे कि जे बात किसी को बाहर पता नहीं चली, ...... तुमाई इज्जत की लगी रहती थी इसके लाने किसी के आगे मूं नईं खोला। सोच लो कोई और होता तो तुम तो बदनाम हो गईं होती। पिछले हप्ते पीठ पे जो लात तुमने जमाई थी, सच्ची अभी तक दुख रही है। हल्दी-चूना लगाया तो था पर तुमाए आगे हल्दी-चूना की कुछ चलती क्या ? पता नहीं तुमाई लात में ब्रहम्मा जी अपनी लात घुसाए देते हैं। अब उप्पर जा रए हें तो उनसे जे पूछेंगे जरूर।
तो अब चलैं जोजो रानी, सच्ची मन तो नईं हो रहा, पर मरद जात एक बार कुछ ठान ले तो पीछे हटै से हेटी होती है। तुम तो जानती हो छाती में  कित्ते सारे बाल हैं हमाए। असली मरद हैं, मौत से डर तो नईं जाएंगे। कल जब बात निकले तो मोड़ा-मोड़ी को हमाई बहादुरी के किस्से सुनाना। देखो अगर भूत बन गए तो तुमारी रच्छा जरूर करेंगे.... आखिर हमारा भी फरज है.... पीछे नहीं हटने वाले हैं हम, देख लेना अमावस की रात इमली के झाड़ के नीचे खड़े मिलेंगे तुमारे लाने। ...... और हांएक बात और कह दें, ... तेरा दिन बाद हमारा नुक्ता अच्छे से करना। पैसों की फिकिर मत करना, सरकार मुआवजा देती है लाख-दो लाख। नुक्ते में इससे ज्यादा नईं लगेगा। .... देख लो जोजो रानी, तुमपे कुछ बोझा छोड़े के नईं जा रए हैं हम। ..... अच्छा राम राम, ध्यान रखियो सबका। ...... तुमारा हिम्मत सिंग।
‘‘ बस इत्ताई लिखा है साहब। ’’
‘‘ कितना भला आदमी था रे तेरा भाई । अबे हमको रोना आ रहा है, जा जोजो को बुला ला, उससे लग के थोड़ा रो लें, सरकारी हुए तो क्या हुआ, कुछ जिम्मेदारी हमारी भी बनती है।’’

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