बुधवार, 22 जुलाई 2015

तुम तो यार घोचूंनंदन हो

              अपने अच्छे दिनों की उम्मीद में वह अखबार में वैवाहिकी काॅलम देख रहा था। वास्तव में जवानी की दहलीज पर अकेला खड़ा खड़ा ऊब चुका वह, ऐसा मान रहा था कि शादी के बाद हर आदमी के अच्छे दिन आ ही जाते हैं। हाथ की रेखाएं और जन्मकुण्डली वह हमेशा अपनी पतलून की दांईं जेब में तैयार ही रखता है। जैसे ही कोई ज्योतिषी दिखा कि दन्न से उसके सामने फैला  दी। अच्छे दिनों का सारंगी वादन सुन कर वह इतना तन जाता जितना कि साठ साल में उसके  बाप-दादा भी कभी नहीं तने। जवानी के सपनों की मत पूछो, फोरलेन हाईस्पीड होते हैं और देखने वाला बिना ब्रेक के। बात शादी की हो तो मल्टीकलर, घोड़ी बैंड बाजा सब एक साथ, यानी अच्छे दिन फोर्थ-फिफ्थ गियर में। ताडू ज्योतिषी ने कहा आपके अच्छे दिन बस आने ही वाले हैं, थोड़ी बहुत बाधाएं हैं वो मैं हटा दूंगा। कुछ दे जाओ और घर जा कर प्रतीक्षा करो। समझो अच्छे दिन पीछे पीछे मेट्रो एक्सप्रेस से आ ही रहे हैं।
                  एक सुबह उसे विज्ञापन से पता चला कि किन्हीं भले लोगों को योग्य वर चाहिए। वह योग्य है इसमें उसे कोई शक नहीं था, रहा सवाल दूसरों का तो आज दूसरों पर कौन यकीन करता है। संपर्क हुआ, बात हुई, लड़की वाले अच्छे दिनों का शगुन ले कर आ गए। ऐसे मौकों पर लड़कों को अक्सर घंटियां सुनाई देती हैं, ज्यादातर मामलों में वे इसे मंगलध्वनि मान लेते हैं। लड़की थी, उसकी छोटी बहन यानी साली साहिबा थीं, लड़की के भाई, मामा, अम्मा, भौजी, ताऊ , ताई यानी पूरी पार्टी साथ। मामा बोले शादी तुरंत करेंगे, आखिर सब कारेबारी हैं, और जल्दी लौटना चाहते हैं। अंधा क्या चाहे एक अंधी। कुछ उसने नहीं देखा-सोचा, … कुछ वे नहीं देख-सोच रहे। मौके पर मार ले वो मीर। उसने भी गरम तवे पर शादी के दानों को फटाफट भुना लिया। वो क्या कहते हैं आप लोग ‘चट मंगनी और पट ब्याह’। हो गया, लड़की रो-घो के बाकायदा उसके घर में आ गई। भला और किसे कहेंगे अच्छे दिन। हप्ता भर में चार मंदिर, आठ होटल, पांच सिनेमा और हज्जारों की खरीददारी हुई। स्क्रिप्ट की मांग के बावजूद यहां कुछ और नहीं बताया जाएगा, हालांकि सामान्य परिस्थितियों में सब कुछ सामान्य होता रहा। 
                         आठवें दिन की सुबह वह कुछ देर से उठा, लगा जैसे रात को कुछ नशा करके सोया था। पता चला कि दुल्हन मेंहदी लगे हाथों समेत गायब है। फोन लगाने के लिए हाथ बढ़ाया  तो चला  कि अपना  फोन भी गायब है। शंका  हुई तो अलमारी देखी, जेवर, कपड़े वगैरह सब गायब। और तो और खुद उसके कपड़े भी नदारत थे । वह बाहर निकल कर शोर मचाना चाहता था लेकिन लुटापिटा, ‘अर्द्धनग्न-पीके’ कैसे तो बाहर निकलता और किसको कुछ कहता। मोहल्ले वाले सेन्सर बोर्ड की तरह माडर्न तो हैं नहीं। 
                     दिनों बाद विकास टी स्टाल पर वह एक पुलिस वालाजी साहब को समोसों के भोग के बाद चाय सेवन करवाते हुए बता रहा है कि वो रिश्तेदार नहीं पूरी गैंग थी लुटेरों की। किसी तरह मेरे अच्छे दिन बरामद करवाओ साहब। 
                      साहब बोले-‘‘ तुम तो घोचूंनंदन हो यार, अच्छे दिन ऐसे आते हैं क्या .... हनुमान जी का परसाद है कि हाथ आगे किया और फांक लिया घप्प से ! ..... आगे घ्यान रखना, फिर मत फंस जाना। ’’
                     ‘‘ सो तो ध्यान रखेंगे साहेब,  लेकिन अभी इस केस में कुछ कीजिए ना।’’
                  ‘‘ पुलिस केस है, कोर्ट कचहरी में बीस-पच्चीस साल तो लगते हैं। .... बरामद हो जाएगा .... लेकिन हिम्मत रखो .... पच्चीस साल .... यूं निकल जाएंगे .... अभी देखते देखते ।’’
                                                                     
                                                                            -----

बुधवार, 8 जुलाई 2015

व्यापम पर स्यापम

                       
  विरोधी दल वाले हाथी-हाथी कहते छाती कूट रहे हैं, जनता भी साफ देख रही थी कि वो हाथी है, मीडिया भी चिल्ला रहा है कि हाथी है लेकिन मंत्री के लिए वह चूहे का बच्चा। उनका कहना था कि आप चीजों को बड़ा करके बता रहे हैं। जिसे हाथी बताया जा रहा है दरअसल वो रस्सी मात्र है। सब जानते हैं कि मेडिकल का क्षेत्र प्रतिभा का क्षेत्र है, वहां उन्हें ही सफलता मिलती है जो प्रतिभाशाली हैं। साठ साल तक लोग ईंट-गारा, डामर-सड़क से अठन्नी-चवन्नी उठाते रहे अगर प्रतिभा होती तो अवसर उस समय भी उपलब्ध थे। उनकी ईर्ष्या साफ दिख रही है, वे विरोध नहीं कर रहे हैं छाती कूट रहे हैं। ‘हाय हम न हुए’, ..... सच बात ये है कि उन्हें पछतावा है। लेकिन जो परिवार पूजन करने को राजनीति कहते हैं वे कुछ नया करने का सोच भी कैसे सकते हैं। आज रस्सी को हाथी बता रहे हैं, कल को जब हाथी जैसा कुछ होगा तो क्या ‘डायनोसार’ चिल्लाएंगे। इससे कुछ नहीं होगा, हम सबको देश  के बारे में सोचना चाहिए। दे से उपर कुछ नहीं है, हमारी माता-बहेनों से उपर कुछ नहीं है। अभी यूपी-बिहार लूटना है, मंदिर बनाना है, गंगा को साफ करना है, उज्जैन में संत-महात्मा आने वाले हैं उन्हें नहलाना है, देव उठ जाएंगे तो लाड़ली लड़कियों के ब्याह कराने हैं। बहुत काम है सरकार के पास, विरोधियों की तरह खाली नहीं बैठे हैं मातृपूजन में मंझीरे बजाते। तो भाइयो और बहनो, प्रदे के विकास के लिए आइये सब मिल कर काम करें। 
                        दूसरे बोले, देखिए हम डरते नहीं किसी से। कानून सबसे उपर है, इसलिए सबसे उप्पर वाले टांड पर बंधा रख दिया है। पार्टी बहुत जिम्मेदारी से काम करती है। जिम्मेदारी हमारी पहचान है। अगर घोटाले या हत्याएं करेंगे तो जिम्मेदारी से करेंगे वरना नहीं करेंगे। जब हम किसी काण्ड की जिम्मेदारी नहीं ले रहे हैं तो इसका साफ मतलब है कि उसमें हमारा हाथ नहीं है। इससे बड़ा प्रमाण और क्या चाहिए किसी को ! जो आया है संसार में वो एक दिन जाएगा, इसके लिए ईश्वर का विधान जिम्मेदार है पार्टी का नहीं। 
                      पीले कपड़ों में फंसे एक और ‘जी’ बोले, - कोई घोटाला नहीं है न कोई षडयंत्र। व्यापम एक संस्कृति है। भरत को राजगद्दी दिलवाने के लिए राम को चौदह वर्ष वन में भटकने  को क्या कहेंगे आप। बस सेम टू सेम हुआ है। कई क्षेत्रों में राम राज्य लाने का वादा तो हमेशा  करते रहे हैं हमारे पुराने नेता भी। इसमें नया क्या है जिस पर इतना हल्ला मचाया जा रहा है। विरोधियों को संस्कृति का ज्ञान नहीं है और वे चाहते हैं कि लोग अधार्मिक हो जाए। लेकिन सरकार भागवत-भंडारे में लगी श्रद्धालु जनता को बरगलाने नहीं देगी। सरकार से भले न डरें पर विरोध करने वालों को यमराज  से अवश्य  डरना चाहिए। अगर परंपरा पर ध्यान दें तो पाएंगे कि सब उसके अनुरूप हो रहा है। कहा गया है समरथ को कोई दोष नहीं। जो समर्थ है उसके लिए सब सुलभ होता रहा है, यही आदर्श  परंपरा है। इसमें इतना चौंकने वाली कोई बात नहीं है। हमारा कहना है कि सब लोग शांत रहें, दिन में सिनेमा और शाम को सीरियल देखें। सुबह योग करें, लंबी सांस भरें और धीरे धीरे छोड़ें । दो-चार दिन में व्यापम गैस से मुक्ति मिल जाएगी। 
                                                                            ----


बुधवार, 1 जुलाई 2015

मस्त-मौन


  मौन किसी एक पार्टी या व्यक्ति की बपौती नहीं है. खुल्ला खेल लोकतंत्र का, जो भी मौन का विरोध करता हुआ कुर्सी कब्ज़ा ले बाद में अधिकार पूर्वक मौन लगा सकता है. मौन राजनीति की लंगोट है. जिसने बांध ली वो पहलवान. अब अखाडा उसका, दांव उसके, जीत उसकी. पांच साल उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है. संविधान में मौन के खिलाफ कोई कानून नहीं है. आदमी कभी भी, कहीं भी, कुछ भी करके लगा सकता है. मौन लगाने से आदर्श व्यवस्था बनी रहती है. सबसे ज्यादा बलात्कार हमारे यहाँ होते हैं, चूँकि ज्यादातर मामलों में मौन-संस्कार प्रभावी रहता है इसलिए व्यवस्था पर कोई आंच नहीं आती है. देवताओं तक ने किया और मौन लगा गए. आज भी हर तरह के बलात्कार का कारण मौन है. पुलिस मौन धारण किये आदमी पर खुलेआम लाठीचार्ज भी नहीं करती है, हालाँकि मुंह खुलाने के लिए उसे अपने विशेष कक्ष में तरह तरह के आसान करवाना पड़ते हैं. अंडरवर्ल्ड और राजनीति में मौन का वैवाहिक जीवन में करवाचौथ का है.
लेकिन हम यहाँ मौन पर मौन नहीं लगाएंगे, बात करेंगे. मौन दरअसल एक बहरी चीज है. जो मौन होता है वो ऊपर से मौन होता है. उसे अंदर इतना शोर चल रहा होता है कि मुक्त भाव से साँस ले तो चीखें सुनाई पड़ने लगाती हैं. आप जानते ही हैं कि टीवी म्यूट कर देने से अंदर की आवाजों पर असर नहीं होता है. मौन आदमी म्यूट टीवी होता है, वो नहीं होने की तरह सिर्फ होता है. आपको संतोष होगा कि हाँ, हमारे पास टीवी है. नहीं होता तो कितना खाली खाली लगता.
            पिछली बार जब देश का पदेन मुखिया मौन रहा तो रह किसी ने उनका मजाक बनाया. ईश्वर में मुंह में जुबां दी है तो इसलिए कि मौन की खिलाफत की जा सके. अब पता चला कि मौन एक कला है. जब खुद हाईकमान मौन हो तो उसके मौन में सुर ,मिलाना त्याग है. तो मौन एक तरह का त्याग भी है.
             राजनीति को ज्यादातर लोग गंदा बोलते हैं. वे मौन को नहीं जानते. मौन एक शानदार राजनीति है. सारा देश भी छाती कूट कूट कर सवाल उछलता रहे और आप मुस्कराते हुए दिल की बात करते रहिये. पांच साल आराम से निकल जायेंगे. अगर कोई साध ले तो मौन हाईकमान से भी बड़ा होता है, बशर्ते वह पुत्रमोह से पीड़ित ना हो. मौन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि विरोधी हमेशा मौन का विरोध करते हैं, और मौनी अक्सर बच जाता है.
             समाज बदल रहा है और सोच भी बदल रही है. दुनिया देख रही है कि मौन एक योग है. आँखे बंद कीजिए, कानों में अंगुली ठूंस लीजिए, और मुंह कास कर बंद कर लीजिए. अब लंबी सांसें भरिये और धीरे धीरे छोडिये. ऐसा तब तक करिये जब तक कि सवालों का राम नाम सत्य नहीं हो जाये. कोई पूछने पर आमादा ही हो तो साफ साफ कहिये कि कोई इस्तीफा नहीं देगा, सब योग करेंगे. आप भी योग करो, करते रहो, एक दिन तनावमुक्त हो जाओगे.

­­­­­_____