गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

जुलूस

जिस सड़क को हाल ही में राष्ट्रिय  समझदारी की उम्मीद के साथ झाड़ कर साफ किया गया था उस पर पूरे परंपरागत तामझाम के साथ एक जुलूस निकल रहा है। वैसे घोषित यह है कि प्रतिमा का विसर्जन किया जाना है लेकिन इरादों के अनुसार भियाजी का शक्तिप्रदर्शन है। हांलाकि  उनके पास कितनी शक्ति है इस विषय पर विशेषज्ञों और जानकारों में काफी मतभेद है। मान्यता यह है कि प्रदर्शन  जोरदार हो तो शक्ति भी जोरदार मानी जाएगी। इसका मतलब यह है कि प्रदर्शन  ही शक्ति है। भियाजी प्रदर्शन  का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं, बल्कि मौके को आने में देर हो तो पकड़ कर घसीट लाते हैं। ऐसा ही घसीटा जा रहा मौका इस समय उनका रुतबा बढ़ा रहा है।
इस समय भियाजी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। जुलूस में तमाम महिलाएं शामिल हैं और सबने एक जैसी साड़ी पहन रखी है। पुरुष, यानी जिनका युवापा अब जाता रहा, पीले कुर्ते में हैं। युवाओं ने, जिनमें ज्यादातर बारह तेरह साल से सत्रह अठारह साल के हैं लाल टी-शर्ट पहने हुए हैं। चर्चा है कि जोरदार तरीके से नारे लगाए तो शाम को दो-दो सौ रुपए और मिलेंगे सबको। इसी का असर है कि लगता है हृदय-सम्राटी का माहौल बन गया है। हर हजार बारह सौ फुट की दूरी पर स्वागत-मंच बने हुए हैं, जिस पर भियाजी के पट्ठे दो क्विंटल फूलों के साथ तैनात हैं। सारा मार्ग बड़े बड़े पोस्टरों से अंटा पड़ा है। सबमें  जीवित और दिवंगत राष्ट्रिय  नेता भियाजी के साथ उनका समर्थन करते दिखाई दे रहे हैं। मंचों पर उनके पोस्टरों का जलवा अलग है। इनमें भियाजी सीना ताने, मुक्का बांधे, मां-भैन एक कर देने की मुद्रा में मौजूद हैं। ये खासतौर पर उनके विरोधियों के लिए हैं जो कल अखबार में उनकी फोटो देखने वाले हैं।
प्रतिमा के आसपास की भीड़ भगवान की जै-जै कर रही है ताकि उन्हें भ्रम बना रहे, शेष भियाजी की जै-जै कर रहे हैं कि उन्हें भी भ्रम बना रहे। उन्होंने एक युवा-सेना भी बना रखी है जो इस वक्त लाल टी-शर्ट में दिखाई दे रही है। वे सबसे आगे नारे लगाते चल रहे हैं कि जो भियाजी से टकराएगा, उसका ऐसा-वैसा हो जाएगा। यह भी कि जब तक सूरज चांद रहेगा, उससे ज्यादा भियाजी का मंगल रहेगा। जिस भी मंच के सामने से जुलूस गुजर रहा है फूलों की बरसात हो रही है। पट्ठे फूल मालाएं भियाजी के गले में ठूंसे जा रहे हैं और वे बराबर गधे की तरह लदे-फंदे से नजर आ रहे हैं। लेकिन मजे की बात यह है कि उन्हें मजा आ रहा है, वे छा रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि यदि कहीं स्वर्ग है तो बस यहीं है, यहीं है। वे फूले तो पहले से ही थे अब समा भी नहीं रहे हैं। कल से वे सोए नहीं हैं लेकिन चेहरे सुस्ती नहीं है। सारा माहौल उनके पक्ष में फुदक रहा है। प्रतिमा अगर प्रतिक्रिया दे पाती तो पता चलता कि वह कितनी खिन्न और लाचार है। उसे लग रहा है कि शक्ति भगवान में नहीं भियाजी में है और वे  प्रतिमा को अपराधी की तरह बांधे सजा देने के लिए जा रहे हैं।
जुलूस के पीछे बहुत कुछ छूट रहा है। फूल जो भियाजी के चरणों में फेंके गए थे, अब भीड़ द्वारा रौंदे जाने के कारण गन्दगी की श्रेणी में थे। पूरे रास्ते पर पानी के खाली पाउच और इसी तरह का बहुत सा कूड़ा-कचरा बिखरा पड़ा था। इससे ज्यादा कचरा पोस्टरों के रूप में उपर टंगा हुआ था। नारे लिखी हुई दीवारे भी शिकायत करती नज़र आ रही थी। लोगों के मन में बहुत कुछ भरा है लेकिन निकल कुछ नहीं रहा है, मुंह सबके एयर टाइट हैं। वहीँ कहीं एक वैद्यराज अपने रोगी से बोल रहे थे कि बीमारी तब तक खत्म नहीं होती जब तक कि उसकी जड़ को खत्म नहीं किया जाए।

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