शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

दलपति और गणपति



                       गणेश जी ने दोनों महानुभावों का स्वागत किया,-‘‘ आओ दलपति द्वय, मुंह मत बनाओ, आप लोगों का प्रमोशन हुआ है। संसदीय बोर्ड में रहते तो सुनता कोई नहीं, पूजा और वंदना से भी जाते। यह अच्छी तरह समझ लो कि पूजा से बड़ा सम्मान दूजा नहीं है। भागते भक्तों की अगरबत्ती भली, माला-परसादी ना तो ना सही। मस्तों का टोला जब झूम के निकले तो किनारा पकड़ लेने में  ही भलाई है। आओ बैठो। ’’
                     मन तो हो रहा था कि दोनों फूट फूट के रो लें गणेश जी के सामने, लेकिन मीडिया वाले ताक रहे थे कैमरा लिए। सोचा कि यहां दो मिनिट रो दिए तो टीवी पर दो हप्ते तक दिन-रात रुलाएंगे। हिम्मत नहीं हुई, और अफसोस भी कि क्या समय आ गया है अब कद्दावर रहे आदमी को रोने के लिए भी हिम्मत चाहिए। एक जमाना वो भी रहा है कभी जब आज के तमाम सूरमा खींसें निपोरा करते थे उनके सामने। बड़े वाले यानी जो उम्मीद से लदे चले आ रहे थे, बोले- ‘‘ गणेश जी, आप तो बुद्धि के देवता हैं, छलपति को कुछ देते क्यों नहीं ? आपने तो पता नहीं किस बब्बर शेर को चूहा बना कर उसे अपनी सवारी बना रखा है। और इधर जो कल तक हमारी सवारी थे आज हमारे सिर पर गणेष बने बैठे हैं। ये कैसा न्याय है आपका !?’’
                   ‘‘ आप संसार से अलग नहीं हैं दलपति द्वय, जो रीत सबके लिए चली आ रही है वही आप लोगों के लिए भी है। नींव के पत्थर एक दिन जमीन में दाब दिए जाते हैं। इमारत बनाने वाले कारीगरों को एक दिन उसी इमारत में घुसने नहीं दिया जाता है। बच्चे को बड़ा करने वाली आया को माता का दर्जा नहीं मिलता है, इसलिए शोक मत करो दलपति द्वय। मार्ग किसी का सगा नहीं होता है। जो जीवन भर मार्ग को रौंदते रहे हों उनके सामने भी एक समय ऐसा आ जाता है जब वे केवल मार्ग के दर्शक  बन कर रह जाते हैं।          ... लड्डू खाओगे ?’’
               ‘‘ क्यों परिहास करते हैं गणेश जी, ऐसे में भला लड्डू खाए जा सकेंगे!! ’’ 
             ‘‘ क्यों नहीं खाए जा सकेंगे ! अरे भले मानसों, अब तो लड्डू खाने के दिन आए हैं। खूब खाओ, वनज बढ़ेगा, नींद अच्छी आएगी। लोगों में संदे जाएगा कि आप लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ा है। प्रसन्न दिखना वर्तमान में सबसे बड़ी राजनीति है। प्रसन्न दिखोगे तो लोग दुःखी होंगे। हो सकता है इससे स्थिति बदल जाए। ’’ गणे जी ने दोनों के हाथ में लड्डू रख दिए। 
              ‘‘ देखिए गणे जी, आप तो प्रधानमंत्री कक्ष में भी बिराजे हुए हैं। टीवी पर पूरे दे ने देखा है। सत्ता के इतने नजदीक दूसरा कौन हो सकता है। आप हमारी आयु का ध्यान भी नहीं रख रहे हैं और लड्डू दे कर बच्चों की तरह बहला रहे हैं! जबकि आपको पता है कि डाक्टरों ने मीठा बंद कर रखा है। हमें आसन चाहिए यानी कुर्सी। ऐसा आसन जिस पर ससम्मान बैठ सकें। ’’
                      ‘‘ तो योग गुरू के संपर्क में रहो। उनके पास ऐसे कई आसन हैं जिससे आप लोगों को आराम, सम्मान वगैरह सब मिलेगा।’’ 
                                                             ----

सोमवार, 25 अगस्त 2014

गुलाबजामुन नहीं खाए

       

           कुछ लोग सरकार का विरोध करने के लिए गधे को गुलाबजामुन खिलाना चाह रहे थे लेकिन वह राजी नहीं था। दरअसल गधा बुद्धिजीवी-टाइप था। उसका विश्वास  हरामखोरी में नहीं परिश्रम में रहा है। उसके बाप ने कहा था कि बेटा गधे खानदानी होते हैं, मेहनत करके अपना और इंसानों का पेट भरते हैं। इसलिए वह ऐसे मामलों में नहीं पड़ता है जिसमें राजनीति की बू आती हो।
            विरोध प्रदर्शन  का नेतृत्व कर रहे आदमी ने गधे के कान में फुसफुसा कर कहा-- मैं युवा-हृदय-सम्राट हूं। मेरे भाई मीडिया वाले खड़े हैं, मेरी इज्जत आपके हाथ में है, प्लीज गुलाबजामुन खा कर मुझे आशीर्वाद दीजिए। 
                     गधे ने गरदन हिला दी। उसे पता है कि गरज वाले दिन ये लोग वोटरों को भी गुलाबजामुन पेश करते हैं। वह यह भी जानता है कि जरूरत के समय ये लोग किसीको भी बाप बनाने से भी नहीं चूकते हैं। वोटरों को भी बाप बना लेते हैं, पैर छूते हैं लेकिन बाद में खुद बाप बन जाते हैं। उसके बाप को इंसानों ने कई बार बाप बनाया और ‘पिताजी-पिताजी’ कह कर खूब मेहनत करवाई लेकिन काम निकलने के बाद डंडे से ही सेवा की। 
                 हृदय-सम्राट ने गधे के पक्ष में नारे लगवाना शुरू कर दिया। ‘ये सरकार है अंधों की, सुनता नहीं कोई बंदों की।’, ‘गधे खा रहे गुलाबजामुन, सरकार दिखा रही कानून’। गधे के गले में माला डाल दी गई। एक कार्यकर्ता ने गधे के गले में एक तख्ती पहना दी, जिस पर लिखा है ‘सरकार का जमाई’। ढोल बजने लगे, जैसे अक्सर हमारे यहां जमाई राजा के प्रथमागमन पर बजते हैं। एक युवा नेत्री दीपक और थाली ले कर प्रकट हुई और गधे की आरती उतारने लगी। उसे लगा कि अब वह जीजाजी बालेगी। लेकिन कमबख्त नहीं बोली, नेग भी नहीं मांगा तो उसे राहत महसूस हुई। गधा बुद्धिजीवी और प्रगतिशील किस्म का था और उसे आडंबर कतई पसंद नहीं था। वह इस बात के पक्ष में था कि जमाई को ससुराल वालों का शोषण नहीं करना चाहिए और दहेज या कीमती सामान नहीं लेना चाहिए। इसलिए जब मीडिया के कैमरों के साथ दोबारा उसके सामने गुलाबजामुन लाए गए तो उसने दृढतापूर्वक इंकार कर दिया। लोगों में निराशा  छा गई। लोग बात करने लगे कि गधा पार्टी की किरकिरी किए दे रहा है। कल अखबार में हेडलाइन न बन जाए वरना मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे। 
                    सुना है कि चैरासी लाख योनियों में गधे की योनी ठीक इंसान के पहले वाली होती है। यानी गधे का शरीर छोड़ कर वह तुरंत बाद में इंसान बनता है। साफ है कि जमाई बनने और गुलाबजामुन खाने के लिए वह थोड़ा-सा इंतजार कर सकता है। युवा-हृदय-सम्राट ने एक बार और कोशिश  की, गधे को पुचकारा, उसकी पीठ पर हाथ फेरा, कान में कहा कि हमारा राज आया तो तुझे पुरस्कार भी देंगे। किन्तु कोई असर नहीं हुआ तो उन्होंने गधे को एक लात जमा दी। गधे को गुस्सा आया, सोचा ये काम अब तक मुझे कर देना चाहिए था, उसने अपनी पिछली टांगे उठाई ही थी कि चारों तरफ से उस पर लात पड़ने लगी। गिरता पड़ता वह भाग लिया। लेकिन खुश  था कि मौका मिलने पर भी उसने गुलाबजामुन नहीं खाए। उसने पलट कर देखा कि लूट मची थी, गधे गुलाबजामुन खा रहे थे। 
                                                                        -----

गुरुवार, 21 अगस्त 2014

गंदगी करो और करने दो

           
   जब प्रधानमंत्रीजी बोले हैं कि सफाई रखो तो रखना पड़ेगी, सफाई का महत्व भले ही नहीं जानें पर आदेश  का मतलब तो जानते ही हैं। वरना अपन तो संत है, संत को सफाई से क्या। नहाए तो सीधे गंगा में जिसका कोई अर्थ भी है अन्यथा नहाना-धोना अपना चैन खोना है। इधर एक हमारे बाबूजी हैं, सारी उम्र जल से बैर निकालते रहे हैं। जब चिंतकों  ने कहा कि जल बचाओ तब भी उन्होंने दोनों वक्त स्नान किया। आदमी दिन में झाडू लगाए, मैला साफ करे तब तो उसका एक स्नान बनता है। परंतु सुबह नहा कर बाबूजी सारा दिन धोती समेटे अपने तखत पर पालथी मारे बैठे भगवान की नींद हराम किए रहते हैं, पता नहीं इस काम में वे गंदे किस तरह हो जाते हैं कि शाम को फिर पांच बल्टी का स्नान!! व्यंग्यप्रेमियों, देश  को नहाने-धोने वाले जितना गंदा करते हैं उतना दूसरा कोई शायद नहीं। कुम्भ के मेले को याद कीजिए, लाखों आदमी चला आ रहा है, मात्र नहाने भर के लिए। लोग तो चले जाते हैं अपनी धोती-लोटा ले कर, गंगा कहां जाए नहाने, उसको भी सफाई होना कि नहीं होना ? कहते हैं कि गंगा पाप धोती है, मैं पूछता हूं कि क्यों धोती है जी  ? गंगा बिना कुछ पूछेताछे पाप धो देती है इसलिए बंदे नहा-धो कर फिर भिड़ जाते हैं। अगर गंगा नहीं होती या फिर पाप धोने का ठेका उसके पास नहीं होता तो बहुत संभव था कि लोग पाप के प्रति संजीदा और सावधान रहते। मान लीजिए कि तम्बाखू खाने वाले साल में  एक बार गंगा में कुल्ला कर आए और केन्सर के खतरे से मुक्त हो जाएं तो फिर कौन तम्बाखू की और डाक्टरों की परवाह करेगा ! खूब खाओ और लगे रहो शहर भर की वाॅल-पेंटिंग में। कोई सफाई की बात कहे तो उपर वाले ने एक कान सुनने के लिए और दूसरा निकाल देने के लिए ही तो दिया है।
              बाबूजी को हमने कहा कि प्रधानमंत्री जी बोले हैं कि आसपास का माहौल भी साफ रखने की जरूरत है, कहो तो बाहर की सफाई करवा दें ? वार्मअप में वे पहले खंखारे, खिड़की से मुंह बाहर निकाल कर ‘ठों’ की आवाज के साथ सड़क पर थूका, मानो टीपू सुल्तान के जमाने की बारूद वाली बंदूक चली हो, बोले- ‘‘ क्या जरूरत है !! अभी दिवाली आएगी, लोग घरों की सफाई करेंगे और कचरा बाहर ही पटकेंगे। फिर पटखों का दौर चलेगा, सड़कें उनके कचरे से भर जाएंगी, .... इसी बीच देव उठ जाएंगे, शादियां शुरू हो जाएंगी। लोग बारात के पीछे कप-प्लेट और तमाम तरह की गंदगी छोड़ते जाएंगे। कितना उठाओगे, कितना साफ करोगे। कचरा और गंदगी हमारे उल्लास का, हमारी खुशी  का प्रतीक है। साफ सफाई देख कर हमारे लोग बीमार होने लगते हैं। सफाई के चक्कर में अगर देश  डिप्रेशन में चला गया तो नारे लगाने वालों का टोटा पड़ जाएगा प्रधानमंत्रीजी को। गंदगी देश  को जीवंतता प्रदान करती है। गंदगी करो और करने दो।’’ उन्होंने नारेनुमा शब्द उगले।
                 हमने कहा, - बाबूजी, आप खुद जो दो वक्त का स्नान करते हैं उसका क्या !? 
                वे बोले-‘‘ मन साफ होना चाहिए बालक, फिर बाहर की सफाई का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। संत कह गए हैं ना ‘मन न रंगाए जोगी कपड़ा रंगाए’। देश  भर में कितनी झाडू लगा लो मन काला होगा तो जग में उजाला नहीं हो सकता है।’’
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शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

हम एक प्याज-खाऊ देश

       
              बात खाने की हो तो हम लोग प्याज को लेकर बहुत संवेदनशील होते हैं। गोली चाकलेट नहीं मिलने पर जिस तरह बच्चा हायतौबा मचाता है वैसा ही प्याज को लेकर टीवी चैनल करते हैं। दुनिया वाले, जो भी हमारी खबरे देखते सुनते हैं, मानते हैं कि हम एक प्याज-खाऊ राष्ट्र् हैं। कभी हमें दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र समझा जाता था, अब हम सबसे बड़े प्याजतंत्र हैं। प्याजप्रेमी जल्द ही प्याज को राष्ट्रीय  खाद्य घोषित करवाने के लिए रामलीला मैदान में सरकार के छिलके उतारने का प्रदर्शन करने वाले हैं। सरकार को भी समझ में आ गया कि जनता को अच्छी सड़के मिले न मिलें, विकास हो न हो, रोटी भी मिले न मिले, प्याज जरूर मिलना चाहिए। जब तक प्याज मिलता है जनता मुर्गे गिराती है, प्याज नहीं मिले तो सरकार। प्याज है तो सरकार है, प्याज गायब तो समझो कि सरकार भी गायब। सत्ता के पुराने जानकार फुसफुसाते हैं कि जनता को प्याज और टमाटर उपलब्ध करवा कर खाने में व्यस्त रखो और खुद अपने ‘खाने’ का अवकाश  निकाल लो। इसी का नाम राजनीति है। समझने वाले समझ गए हैं ना समझे वो अनाड़ी है।
प्याज में जादुई गुण होते हैं। जब इफरात में होता है तो जनता कहती है कि बास मारता है, और जब कम होता है तो दवा की तरह समझा जाता है। बंदे बाजार में निकलें और उन्हें प्याज-टमाटर के दर्शन  न हों तो सार्वजनिक बेचैनी और घबराहट के दौरे पड़ने लगते हैं। किचन में गृहणी ऐसे उदास हो जाती है मानो रक्षाबंधन का मौका है और भाई नहीं दीख रहा है। पूरा घर प्याज-टमाटर को ऐसे याद करता है जैसे श्राद्ध पर दादा-दादीजी याद आ रहे हों। वो तो अच्छा है कि अभी पंडितों ने प्याज पुराण नहीं लिखा वरना गली गली प्याजनारायण की कथा के आयोजन होने लगते। भक्तगण प्याजप्रदोष का व्रत रखते और पंडितजी ‘दूधो नहाओ, पूतो फलो’ की जगह ‘टमाटो-चटनी लगाओ, प्याज-पकौड़े खाओ’ के आसिस देते। 
                   गरीब आदमी बड़ा चालाक होता है। प्याज मंहगा होता है तो वो पट्ठा प्याज खाना छोड़ देता है। लाल मिर्ची और नमक की चटनी से शांति पूर्वक रोटी खा लेता है और मस्त सो जाता है। इधर बेचारे अमीर आदमी को अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई से मंहगे प्याज खरीदना पड़ते हैं। आप कहेंगे कि वो मंहगी कार में चलते हैं, मंहगे बंगलों में रहते हैं, मंहगे टीवी, मंहगे फोन वगैरह। तो भई जान लो, यह सब बैंक का होता है, लोन देती है बैंकें, बुला बुला के देती है, परंतु प्याज उन्हें अपनी जेब से खरीदना पड़ता है। दीनहीन अमीर बेचारे ! आदत नहीं उन्हें अपना पैसा निकालने की। फेरी वाला जब प्याज के दाम बताता है तो उनकी आत्मा अंदर से चित्कार उठती है- ‘लूट मची है, डाके पड़ रहे हैं, सरकार अंधी-बहरी है ! अगर यही हाल रहा तो देख लेगें अगले चुनाव में। लेकिन बहुत कम लोगों को ध्यान आता है कि चुनाव वाले दिन ये लोग घर में बैठे प्याज के पकौडे खाते रहते हैं और वोट डालने जाते ही नहीं हैं। बैंकों को जैसे ही समझ पड़ेगी वो प्याज-टमाटर के लिए भी लोन देने लगेगी। 
                   इधर भगवान किसान के साथ सांप-सीढ़ी का खेल खेलता रहता है। बाजार में प्याज के भाव बढ़ते हैं तो अगली बार किसान अपने सारे खेतों में प्याज ही प्याज बो डालता है। फसल भी जोरदार होती है लेकिन मंडी में भाव ऐसे रूठते हैं जैसे ब्याव में इकलौता तिरपट जीजा रूठता है। किसान मनाता रहता है पर भाव न आज आता और न ही कल। मजबूरन किसान को प्याज अपने जानवरों के आगे डालना पड़ती है। दूध का जला अबकी बार वो प्याज कम बोता है, तो मंडी में प्याज सोना हो जाती है। पिछली बार उसके जानवरों ने प्याज खाई अबकी उसके छोरा-छोरी को दो डली खाने को ना मिली। उपर भगवान मूंछ मरोड़ता है नीचे किसान। 
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राजनीति के शोले

             
   जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो मांईकमान ने बिट्टू को पास बैठाया, लाड़  से सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं -‘‘ देख बिट्टू , एक बात अच्छी तरह से समझ ले, राजनीति सीखने की चीज है। अनुवांशिकता से हाड़-मांस मिलता है, रंग-रूप मिलता है, राजनीति नहीं मिलती।’’
                ‘‘ लेकिन कुर्सी तो मिलती है ना माॅम। मुझे कुर्सी से मतलब।’’ बिट्टू ने हाथ में उठा रखी बेबी चेयर को एक तरफ पटकते हुए कहा।
             ‘‘ वो समय गया बिट्टू जब बिना कुछ किए लोग पीएम बन जाया करते थे। वक्त की नजाकत को समझ, अब तुम बड़े हो रहे हो। तुमको बाकायदा राजनीति सीखना पड़ेगी।’’ 
                ‘‘ किससे सीखूं !! पार्टी का जो भी सामने आता है सीधे पैर छूने लगता है, यहां तक कि बूढ़े भी। तुम ही क्यों नहीं कुछ सिखा देतीं माॅम ?’’ बिट्टू पिछले कुछ समय से अनमना चल रहा था।
                ‘‘ मैंने तुम्हें मुस्कराना सिखाया था बिट्टू ........’’
              ‘‘ तो मैं मुस्कराता तो हूं ना ? अपन हारे थे तब भी मुस्कराया था, मीडिया ने अच्छे से कवर भी तो किया था।’’ 
             ‘‘ अरे बिट्टू ..... बिट्टू..... सही समय पर मुस्कराना राजनीति है, गलत समय पर मुस्कराने से गलत मैसेज जाता है। तुम्हें इस फर्क को समझना चाहिए।’’
              ‘‘ माॅम तुमने ही तो कहा था कि जनता और कैमरे के सामने मुस्कराया करो !! ’’
              ‘‘ लेकिन दुःखियों, पीड़ितों, समस्याग्रस्त लोगों की बात मुस्कराते हुए सुनना अच्छी बात नहीं हैं। ’’
बिट्टू नाराज हो गया। यों भी सारा दिन अकेले रहते बोर होता है। उस पर माॅम के लेसन का हेडेक। अरे भाई थाउजन्ड रुपीस का नोट हर समय थाउजन्ड रुपीस ही होता है। मुस्कराना हर समय मुस्कराने के अलावा और क्या हो सकता है। एक टाइम ये मीनिंग दूसरे टाइम पर वो ! ये पाॅलिटिकल नाॅनसेंस है। 
              मांईकमान ने एक बार और समझाने की कोशिश  की, - ‘‘ देखो बिट्टू , एक बार तुम सही समय पर मुस्कराना और आंसू बहाना सीख गए तो समझ लो कि राजनीति का बहुत कुछ सीख गए। हिन्दुस्तान की रिआया बड़ी भावुक होती है। ’’
               ‘‘ कौन सिखाएगा मुझे ? ’’ बिट्टू कुछ देर सोच कर बोला।
            ‘‘ अपनी गरज के लिए हमें विरोधियों से भी सीखना चाहिए। टीवी पर रामायण में बताया था ना, लक्ष्मण ने रावण से सीखा था। ’’
               ‘‘ तो क्या नरेंद्र  अंकल से सीखूं ?’’ 
              ‘‘ उनसे रहने दे। वो राजनीति नहीं तुझे फैशन-डिजाइन का कोर्स करने में लगा देंगे। ........ लेकिन एक संभावना है। तुम उधर के भीष्म पितामह से राजनीति सीख सकते हो। अभी वे तीरों से बिंधे पड़े हैं, पर होश  में हैं। ’’
                बिट्टू दनदनाते हुए भीष्म पितामह के बंगले पर पहुंचे। चारों तरफ करीब करीब संन्नाटा था। अंदर वीडिओ पर कोई फिल्म चलने की आवाज आ रही थी। हीरो चीख रहा था, गब्बरसिंग, तेरे एक एक आदमी को चुन चुन के मारूंगा। मां का दूध पिया हो तो सामने आओ बुजदिलों। बिट्टू थोड़ी देर रुका, सोचा इस वक्त जाना ठीक होगा या नहीं। लौटने का मन बनाया ही था कि एक कर्मचारी ने बताया कि आप मिल लीजिए, ये फिल्म तो यहां रातदिन चलती रहती है। कह कर वह अंदर पितामह को खबर करने गया। पितामह खुद ही बाहर आ गए और उन्होंने बिट्टू को प्यार से गले लगा लिया।
                  ‘‘ अंकल माॅम ने ये पापड़ भेजे हैं आपके लिए।’’
                   ‘‘ पापड़ !! कहां के हैं ?!’’
                   ‘‘ राघौगढ़ के हैं। स्पेशल हैं।’’
                 ‘‘ थैंक्स ..... देखो तुम्हारी मेरी पीड़ा एक ही है बिट्टू। तुम तो मेरे पास सीखने भी आ गए, पर मैं किसके पास जाउं !!’’
                    ’’ मैं तो आपसे बहुत छोटा हूं अंकल । ’’
                  ‘‘ राजनीति में छोटा-बड़ा कुछ नहीं होता है, जो भी होता है पीएम इन वेटिंग होता है। जो कि तुम भी रहे हो। ’’
                    ‘‘ जो हुआ उसे दुनिया वाले क्या जाने अंकल, आप तो मुझे कुछ सिखाइये। ’’
                    ‘‘ मैं क्या सिखाउं ! आपकी मांईकमान ने मुझे सिखाने योग्य समझा यही बहुत बड़ी बात है वरना हमारी पार्टी वाले तो ...... खैर। ’’
                    ‘‘ मुझे कुछ टिप्स दीजिए ना ।’’
                  ‘‘ शोले पिक्चर देखा करो। उसमें वो दाढ़ी वाला है ना .... गब्बर, लास्ट में उसी ठाकुर से हारता है जिसके हाथ उसने काट दिए थे। एक उम्मीद और हौसला मिलेगा। अभी तो तुम्हें लंबा सफर तय करना है। हो सकता है किसी तांगेवाली पर ही रीझ जाओ। तुम्हारे लिए यह भी बुरा नहीं है। ..... आओ अपन साथ में देखते हैं, नाम शोले है पर काम मरहम का करती है।’’
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