बुधवार, 24 जुलाई 2013

साधो ! ये नंगों की मंडी

            तपस्या भंग करने का काम हमारे यहां ऐतिहासिक रूप से होता रहा है। लेकिन अब तो यह धंधा इतना फलफूल गया है कि जो कभी किसी की नजर में नहीं आते थे अब सबको दिखने-दिखाने के लिए  तैयार हैं। जैसे जैसे ग्लेमर वल्ड  यानी सुन्दरता के बाजार में वस्त्रों का चलन न्यून होता जा रहा है वैसे वैसे भले आदमियों का संकट बढ़ रहा है। लोकपाल बिल पास हो जाने के बाद राजनीतिक संतों को भले ही कुछ समय के लिए ईमानदारी का सांप सूंघ जाए पर रूप-मंडी में लहराती नागकन्याओं के चपेट में साधु नीले-पीले पड़ रहे हैं उसकी ओर किसी का ध्यान नहीं है। अव्वल तो आज के जमाने में किसी किस्म की तपस्या का शुभारंभ ही कठिन है, हो जाए तो उसका निर्वाह और भी मुश्किल। साधु किस्म का आदमी देश और दुनिया के समाचार देखने के लिए टीवी चालू करता तो उसके सामने कोई दूसरी दुनिया खुलने लगती है। कुछ ही दिनों में यह दूसरी दुनियाउसकी साधना में जबरन शामिल हो जाती है। अब आप कहेंगे कि भले आदमियों को टीवी से दूर रहना चाहिए जैसा पहले के दिनों में होता था, भले आदमी सिनेमा देखने नहीं जाते थे। अगर जाते भी थे उतनी ही सावधानी से जितनी कि किसी वैश्या के कोठे पर मुजरा सुनने के लिए शरीफ आदमी जाता था, आज भी जाता है। उस जमाने में तो हेलमेट भी नहीं था, सोचिए कि शरीफ किस कलात्मकता से अपना मुंह छुपा कर अपना लक्ष्य प्राप्त किया करते थे। लेकिन यह कोई मशविरा नहीं है। सरकार ने भले आदमियों की रक्षा के लिए मानवाधिकार आयोग बना रखा है।
             मध्यप्रदेश के मनवाधिकार आयोग का दरवाजा हाल में एक साधु ने खटखटाया। साधु का मतलब भला आदमी नहीं, साधु यानी साधु। वो साधु जो खुद भी उघाड़े रहते हैं, देश का पांच मीटर कपड़ा बचाने के लिए मात्र लंगोटी पहनते हैं, केवल कुंभ-सिहंस्थ आदि में स्नान करते हैं और जल संरक्षण का संदेश देते हैं, जो अपने चारों ओर आग जला कर घंटों बैठते हैं और इस कर्म को तपस्या करना कहते हैं, वही सच्चमुच्च के साधु। अन्ना से प्रेरित साधु महाराज तीन दिनों तक मानवाधिकार आयोग के दफ्तर के सामने धरना दिए बैठे थे। उनकी शिकायत यह थी कि वे सन् 2010 में महू के पास सिंगरौली गांव में हनुमान मंदिर में बैठे तपस्या किया करते थे तब वहां एक सुन्दर महिला उटपटांग हरकत कर उन्हें डिस्टर्बकिया करती थी। बाबा को डिस्टर्बहोने में कोई खास दिक्कत नहीं थी । सब बढ़िया चल रहा था, लेकिन एक दिन वह उनसे लिपट गई। बाबा को पता नहीं था कि ऐसी लिपटन से तपस्या भंग हो जाया करती है। जब हो गई तो बाबा का माथा भी ठनका और भोपाल आ कर न्याय की गुहार लगाते धरने पर बैठ गए। उनकी मांग थी कि जब तक उस महिला पर कार्रवाई नहीं होगी वे धरने से नहीं हटेंगे। आखिर उनकी वर्षों की तपस्या भंग हो गई है और सरकार है कि अभी तक सो रही है! तपस्या के बीमें की व्यवस्था भी नहीं है, न तपस्या के मुआवजे का कोई प्रावधान है। मानवाधिकार आयोग कुछ दिन पशोपेश में रहा, आखिर उसने मामला स्थानीय कलेक्टर की ओर अग्रेशित कर दिया। अब दिक्कत यह है कि तमाम मनचले साधु, भंग करवाने की लालसा में तपस्या करने लगे हैं। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वह मेनका अब किसी को मिल नहीं रही है।

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